मध्य प्रदेश
पिता बोले- मति मारी थी, रस्सी डालकर खींच लिया होता,MP में पहली बार रोबोट से रेस्क्यू..
बोरवेल का डेड होल एक और जिंदगी निगल गया। 52 घंटे की मशक्कत के बाद सीहोर की तीन साल की सृष्टि को बोरवेल से बाहर निकाल तो लिया गया, लेकिन उसके शरीर में प्राण नहीं थे। रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान ही सृष्टि दुनिया को अलविदा कह गई। सिर पीटते उसके पिता राहुल कुशवाह पछता रहे हैं। रोते-रोते बस यही कह रहे हैं कि मेरी मति मारी गई थी। उसी समय रस्सी डालकर सृष्टि को खींच लिया होता तो आज मेरी लाड़ली मेरे पास होती। सृष्टि की मां कहती हैं कि वो तो मेरे सामने खेल रही थी। बोरवेल से निकली रेत के ढेर को देखकर आकर्षित हुई और वहां चली गई। मैं बचाने जाती उससे पहले ही वो बोरवेल में गिर चुकी थी।
सृष्टि के पिता राहुल कुशवाह बताते हैं कि मंगलवार दोपहर को बच्ची के गिरने के शुरुआती डेढ़ घंटे तक बोरवेल से बेटी के रोने-सिसकने की आवाज सुनाई देती रही थी। वे ऊपर से ही उसको आवाज लगाकर दिलासा दे रहे थे। वे बार-बार कह रहे थे कि वे उसे लेने बोरवेल के अंदर आ रहे हैं। वो बार-बार सृष्टि को कह रहे थे कि घबराना मत मैं तुम्हारे लिए आइसक्रीम और चॉकलेट लेकर आ रहा हूं। सृष्टि भी बोरवले के घुप्प अंधेरे में हां हूं करके जवाब दे रही थी।
थोड़ी देर में एसडीआरएफ और प्रशासन की टीम आ गई। भारी मशीनें चलने लगीं, जिसकी वजह से कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। बाद में बेटी की आवाज बाहर आना बंद हो गई। परिवार-रिश्तेदारों और गांव के लोगों को तब तक केवल चमत्कार की उम्मीद थी। हर इंसान बस इंतजार कर रहा था कि रेस्क्यू टीम ये कहे कि हमने सृष्टि को सही सलामत निकाल लिया। अफसोस ऐसा नहीं हुआ।
खेत में कुशवाह परिवार का घर, अब मातम पसरा है
सीहोर जिला मुख्यालय के पास बसा मुंगावली गांव मुख्य सड़क के किनारे ही है। गांव के नर्मदा प्रसाद कुशवाह के चार बेटे हैं, माखन, रामचंदर, राजेश और राहुल। चारों की शादी हो चुकी है। सबसे छोटे बेटे राहुल की शादी पांच साल पहले हुई थी। परिवार बड़ा हुआ तो नर्मदा प्रसाद ने गांव की मुख्य आबादी से करीब एक किमी दूर खेत में एक घर बनवा लिया। दो बड़े बेटों का परिवार गांव वाले पुश्तैनी घर में और दो छोटे बेटों का परिवार खेत पर बने नए घर में रह रहा था।
जो बच्ची बोरवेल में गिरी है वह नर्मदा प्रसाद के सबसे छोटे बेटे राहुल की पहली संतान थी। राहुल की एक और बेटी है जो ढाई महीने की है। मंगलवार सुबह तक यह घर बच्चों की किलकारियों और खेल-तमाशे से गुलजार था। अब वहां उदास चेहरों का मेला लगा है।
मां-दादी के सामने ही बोरवेल में समा गई
राहुल बताते हैं कि मंगलवार दोपहर को उनकी मां और पत्नी घर के पिछले हिस्से में काम कर रही थीं। बड़ी बेटी सृष्टि भी उनके आसपास ही खेल रही थी। इसी बीच वह गोपाल कुशवाह के खेत की तरफ चली गई। वहां बोरवेल से निकली रेत और छोटे पत्थरों का ढेर पड़ा हुआ था। वह उसी को देखकर आकर्षित हुई और मौत के गड्ढे में समा गई। जब तक दादी और मां की नजर पड़ती वह बोरवेल में गिर चुकी थी।
मां रानी कुशवाह बेटी को गिरता देख बचाने दौड़ी, लेकिन उसके पहुंचने तक देर हो चुकी थी। रानी का कहना है कि उनकी बच्ची गिरते समय उनको पुकार रही थी। वह पुकार अब भी उनको सुनाई दे रही है। दादी कलावती को पता चला तो उन्होंने शोर मचाना शुरू किया। घर के लोग जुट गए। 10-15 मिनट में गांव से पूरा परिवार और पड़ोसी भी मौके पर पहुंच गए थे।
रातभर जागता रहा आधा गांव, पड़ोसी गांवों तक बेचैनी
ढाई साल की सृष्टि के बोरवेल में गिर जाने की घटना से पूरा गांव सदमे में है। पड़ोसी गांव जमुनिया के विवेक रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए की गई घेराबंदी के बाहर से एकटक बोरवेल के आसपास हो रही गतिविधियों को देख रहे थे। घेरे से बाहर निकलते समय वे भास्कर रिपोर्टर के पास दौड़कर आए और पूछा मोड़ी की क्या खबर है, आप तो पत्रकार हैं तो साहब ने आपको तो बताया ही होगा।
इस गांव के आसपास में बोरवेल में बच्चे के गिरने का यह पहला मामला था। घटनास्थल के आसपास हजारों लोग जमा हो गए थे। जैसे ही सुरक्षा घेरे से कोई कर्मचारी या अफसर बाहर आता। गांव वाले पूछते बच्ची बच गई? जो मौके पर नहीं थे वो गांव वाले बराबर फोन पर बच्ची की कुशलक्षेम पूछ रहे थे। यही हालात रायपुरा और जमुनिया गांवों में भी दिखे। सबका दिल बुझ चुका था, लेकिन सब यही उम्मीद कर रहे थे कि भगवान कोई चमत्कार कर दे और मासूम बच्ची बच जाए।
सरपंच ने एसडीएम को बताया और पूरा प्रशासनिक अमला पहुंच गया
सृष्टि के बोरवेल में गिर जाने की खबर आधे घंटे के भीतर गांव में फैल चुकी थी। सरपंच ने इसकी जानकारी एसडीएम को दी। उसके बाद पूरा प्रशासनिक अमला बचाव कार्य में जुट गया। सबसे पहले स्थानीय राजस्व और पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंचे। एसडीआरएफ की स्थानीय टीम पहुंची। एम्बुलेंस को बुला लिया गया। बोरवेल में ऑक्सीजन सप्लाई शुरू करा दी गई। एसडीआरएफ की सलाह पर बोरवेल से पांच फीट की दूरी पर गड्ढा खोदने का काम शुरू किया गया। मंगलवार देर शाम तक अफसर समझ गए थे कि पथरीली अड़चनों के कारण ऑपरेशन आसान नहीं होगा, फिर भी उन्होंने प्रयास शुरू किया।
दूसरे जिलों में काम कर रही मशीनें भी मंगवाईं
प्रशासन ने गड्ढा खोदने के लिए जेसीबी मशीनों को तुरंत ही काम पर लगा दिया था। 10-12 फीट नीचे काली चट्टान होने की आशंका के चलते पोकलेन और ड्रिल मशीनों की जरूरत महसूस हुई। एसडीएम अमन मिश्रा ने सभी संभावित मशीन संचालकों को अपनी मशीन मुंगावली पहुंचाने को कहा। मुंगावली के पड़ोसी रायपुरा गांव के चैन सिंह मेवाड़ा की भी एक पोकलेन बचाव अभियान में लगी थी। मेवाड़ा बताते हैं कि एसडीएम साहब ने उनको मुंगावली सरपंच के जरिए फोन लगवाया था। उस समय मेरी मशीन शाजापुर जिले में चल रही थी। आनन-फानन में वहां का काम रोककर मशीन को वापस बुलाया गया और तब से वह मुंगावली में बचाव दल के हवाले है।
आठ घंटे की मशक्कत के बाद रोबोट ने शव बाहर निकाला
एनडीआरएफ और सेना के उपाय जब सफल नहीं हुए तो बचाव विशेषज्ञों ने गुजरात से बोरवेल रेस्क्यू रोबोट बुलाने का फैसला लिया। मध्यप्रदेश में पहली बार इस रोबोट का उपयोग किया गया। बातचीत होने के बाद गुजरात से रोबोटमैन महेश अहीर अपने गैजेट के साथ मध्यप्रदेश के लिए रवाना हुए। सीधी उड़ान नहीं मिली तो दिल्ली होकर गुरुवार सुबह भोपाल पहुंचे। वहां से प्रशासन उन्हें सीधे सीहोर के मुंगावली गांव ले गया।
बचाव दल से शुरुआती बातचीत में हालात समझने के बाद सुबह 9 बजे से महेश ने काम शुरू किया। सबसे पहले रोबोट को बोरवेल में डालकर स्कैनिंग की गई। उससे मिले डाटा का विश्लेषण कर बचाव की रणनीति बनाई। प्लानिंग पर काम करते इससे पहले आंधी आई फिर बारिश। थोड़ी देर रेस्क्यू ऑपरेशन रुका रहा। बारिश रुक जाने के बाद फिर से बचाव अभियान शुरू हुआ और करीब 5 बजे बच्ची को बाहर खींच लिया गया। बच्ची तो बाहर आ गई, लेकिन उसमें प्राण नहीं थे।
सृष्टि के बाहर आते ही डॉक्टर ने थामा और दौड़ लगा दी, बचा नहीं पाए
बच्ची के बोरवेल से बाहर आते ही पहले से मौजूद डॉक्टर ने उसे गोद में थामा और एम्बुलेंस की तरफ दौड़ लगा दी। एम्बुलेंस भी बिल्कुल नजदीक ही खड़ी थी। उसमें डालकर एम्बुलेंस को दौड़ा दिया गया। सृष्टि को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। मौत की वजह और समय पता पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद चलेगा।
रोबोटमैन महेश अहीर बताया कि जब बच्ची को बाहर निकाला गया तब वह बेहोश थी। वह किसी प्रकार से रिस्पॉन्ड नहीं कर रही थी। हमने रोबोट के डेटा के साथ सेना और एनडीआरएफ की मदद से रेस्क्यू पूरा किया।
बोरवेल मालिक को पकड़ लिया था, अब दर्ज होगा केस
हादसे के बाद सक्रिय हुए प्रशासनिक अमले ने दोषियों की तलाश शुरू कर दी थी। बुधवार को ही बोरवेल खुदवाने वाले किसान गोपाल कुशवाह को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। सृष्टि को बाहर निकालने की कोशिश जारी थी, ऐसे में कोई केस दर्ज नहीं हुआ। अब बताया जा रहा है पुलिस बोरवेल मालिक पर लापरवाही की वजह से हुई मौत का केस दर्ज करने वाली है। केस दर्ज करने के बाद गिरफ्तारी की जाएगी और न्यायालय में पेश किया जाएगा।
हर साल मासूमों को निगल रही है ऐसी लापरवाही
- इसी साल छतरपुर के ललगुवां गांव में तीन साल की राशि एक खुले बोरवेल में गिर गई। करीब 3.40 घंटे की मशक्कत के बाद स्थानीय पुलिस ने एक रस्सी की मदद से बच्ची को बाहर खींच लिया। बच्ची कांशस थी और माता-पिता से बात कर रही थी। उन्होंने बोरवेल में डाली गई रस्सी को पकड़कर हाथ में बांधने को बोला और बच्ची ने वही किया।
- कुछ महीनों पहले विदिशा के खेरखेरी पठार गांव में आठ साल का लोकेश अहिरवार बोरवेल में गिर गया था। वह बंदरों को भगा रहा था। बोरवेल 60 फीट गहरा था और लोकेश 43 फीट पर फंस गया। एसडीआरएफ और एनडीआरएफ ने 24 घंटे की मशक्कत के बाद उसे निकाला, लेकिन लोकेश को बचाया नहीं जा सका।
- 27 फरवरी 2022 को दमोह जिले में सात साल का बच्चा प्रिंस 300 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था। वह 20 फीट पर फंस गया था। वह 6 घंटे की मशक्कत के बाद बाहर निकाल लिया गया, लेकिन उसे भी बचाया नहीं जा सका।
- दिसंबर 2022 में बैतूल जिले के मंडावी गांव में आठ साल का तन्मय साहू सूखे बोरवेल में गिर गया था। वह 55 फीट पर फंसा हुआ था। बचाव दल ने पोकलेन मशीनों से खुदाई कर उस तक पहुंचने के लिए सुरंग बनाई। इसमें चार दिन लग गए। उसको बाहर निकाला गया तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
- 22 जून 2022 को छतरपुर के नारायणपुरा गांव में चार साल का बच्चा दीपेंद्र बोरवेल में गिरा था। बच्चा 25 फीट की गहराई में फंसा था। करीब सात घंटे की मशक्कत के बाद बचाव दल ने रस्सी के सहारे बच्चे को बाहर खींच लिया।
- 16 दिसंबर 2021 को छतरपुर के ही दौनी गांव में डेढ़ साल की बच्ची दिव्यांशी बोरवेल में गिरी थी। सेना और एनडीआरएफ ने 10 घंटे की मशक्कत के बाद उसे सकुशल बाहर निकाल लिया।
जब तक हादसा न हो, तब तक सोया रहता है सिस्टम
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की बेंच ने नलकूपों की वजह से होने वाली गंभीर दुर्घटनाओं से बचाने के लिए 6 अगस्त 2010 को एक आदेश पारित किया था। इसमें साफ शब्दों में कुछ दिशा निर्देश तय किए गए हैं। प्रशासन खासकर कलेक्टर पर इसका पालन करवाने की जिम्मेदारी है, लेकिन सरकार ने इसे कभी पूरी तरह से लागू ही नहीं कराया। प्रशासनिक सिस्टम तब तक सोया रहता है जब तक इस तरह का कोई हादसा हो नहीं जाता।
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे हादसों पर
- जिस जमीन पर नलकूप खोदा जाना है, उसके मालिक को नलकूप की खुदाई कराने के पहले अपने इलाके के संबंधित सक्षम अधिकारी अर्थात जिला कलेक्टर (जिला मजिस्ट्रेट), ग्राम पंचायत के सरपंच और अन्य वैधानिक अधिकारियों को लिखित सूचना देनी होगी।
- नलकूप की खुदाई करने वाली सरकारी संस्था, अर्ध-सरकारी संस्था या ठेकेदार का पंजीयन जिला प्रशासन या संबंधित सक्षम अधिकारी के कार्यालय में होना चाहिए।
- जिस स्थान पर नलकूप की खुदाई की जा रही है, उस स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए। साइन बोर्ड में नलकूप खोदने या उसका रखरखाव करने वाली एजेंसी का पूरा पता और नलकूप के मालिक या उसे काम में लाने वाली एजेंसी का विवरण दर्ज होगा।
- नलकूप की खुदाई के दौरान उसके आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग या अन्य उपयुक्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
- नलकूप के बनने के बाद उसके केसिंग पाइप के चारों तरफ सीमेंट-कान्क्रीट का प्लेटफार्म बनाया जाएगा। इसकी ऊंचाई 0.30 मीटर होनी चाहिए। प्लेटफार्म जमीन में 0.30 मीटर गहराई तक बनाना होगा।
- केसिंग पाइप के मुंह पर स्टील की प्लेट वेल्ड की जाएगी या नट-बोल्ट से अच्छी तरह कसी होगी। इस व्यवस्था का मकसद नलकूप के मुंह के खुले रहने के कारण होने वाले संभावित खतरों से बच्चों को बचाना है। पम्प रिपेयर के समय नलकूप के मुंह को बंद रखा जाएगा।
- नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाएगा।
- यदि किसी कारणवश नलकूप को अधूरा छोड़ना पड़ता है तो उसे मिट्टी, रेत, बजरी, बोल्डर या खुदाई में बाहर निकले चट्टानों के बारीक टुकड़ों से पूरी तरह जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए।
- नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद साइट की पुरानी स्थिति को बहाल किया जाना चाहिए।
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