मध्य प्रदेश
चार वर्षीय बेटी का हाथ उखड़ने पर मां-बाप का दर्द,बाइक पर आगे बैठी थी..
‘दो-तीन मिनट पहले तक तो बेटी अंशिका (4) मेरे पास बाइक पर आगे बैठी थी। फुहारें आने से भीगने लगी तो कहा कि पापा, ठंड लग रही है, पीछे मम्मी के पास बैठा दो। यही किया और 100 मीटर आगे भी नहीं गए थे कि हादसा हो गया।
यह दर्द है राकेश सोलंकी का, जिनकी चार वर्षीय बेटी का हाथ बाइक के पहिए में फंसने से उखड़ गया। बच्ची इंदौर के अस्पताल में भर्ती है। परिवार को यह अफसोस है कि घटना का VIDEO गलत जानकारी के साथ वायरल किया गया।
‘बात 15 अगस्त की है। हम तीनों बाइक से बिस्टान (खरगोन से 20 किलोमीटर दूर) के आगे निकल चुके थे। अंशिका बाइक पर आगे थी। वह इसके पहले भी इस तरह कई बार बैठती रही है, इसलिए आदत में था। उस दिन बादल छाए थे और फुहारें भी आने लगी थीं। बेटी ने कहा कि मुझे ठंड लग रही है, मम्मी के पास बैठा दो।
बाइक रोकी और उसे उसकी मां के पास बैठा दिया। इस तरह वह हम दोनों के बीच में ठीक से बैठ गई। इसके बाद सलिला ने अपना स्कार्फ सिर से लेकर बेटी के आधे शरीर तक ओढ़ा दिया, ताकि वह भीगे नहीं। हमेशा की तरह बाइक धीरे ही चला रहा था। बमुश्किल हम 100 मीटर आगे बढ़े थे कि सलिला चिल्ला पड़ी। वो बोली- अंशिका गिर गई है… गाड़ी रोको।
मैंने बाइक रोकी और दोनों उतर गए। अंशिका को उठाया और देखा तो उसका बायां हाथ कंधे से उखड़ा हुआ था। यह देख मेरी पत्नी को चक्कर आने लगे। मैं कटा हुआ हाथ इधर-उधर ढूंढ रहा था। कुछ समझता तब तक आसपास के लोग आए और बोले कि बच्ची का हाथ पहिए में फंसा है।
हादसा किस हालात में हुआ, यह हम भी अभी तक नहीं समझ पाए हैं। अंशिका की मां तो हादसे को लेकर अभी भी खुलकर बात करने की स्थिति में नहीं है।’
मोबाइल, खिलौनों से बच्ची को बहला रहे मां-बाप
राजकुमार और सलिला हादसे को याद कर अभी भी सहम उठते हैं। अंशिका इलाज के बाद वार्ड में रेफर कर दी गई है। तब से लगातार माता-पिता की गोद में ही दिन गुजर रहा है। दोनों उसे मोबाइल, खिलौने आदि से बहला रहे हैं। सर्जरी के बाद उसका दर्द कम है। वह भोजन भी करने लगी है। इस दौरान कई बार उसका ध्यान अपने कटे हाथ के हिस्से की ओर जाता है तो परिजन उसे बहलाने लगते हैं। मासूम को जल्द ही डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। राजकुमार के परिवार में अंशिका के अलावा दो और बच्चे हैं।
चीकू और चॉकलेट मांगती है, सीधे हाथ से लिखती है
मासूम अंशिका हादसे के बाद से माता-पिता को एक मिनट के लिए भी नहीं छोड़ रही है। घाव बड़ा है, इसलिए उसे बड़ी नजाकत के साथ माता-पिता की गोद में कुछ-कुछ घंटे बैठाया जाता है। उसने इसी साल स्कूल जाना शुरू किया था। उसे चीकू व चाकलेट काफी पसंद हैं। अकसर मोबाइल से खेलती है। अस्पताल के स्टाफ को भी उससे काफी लगाव हो गया है। वे बार-बार उससे बात करने आते हैं और उसका दिल बहलाते हैं। उसे एक-दो दिन में डिस्चार्ज कर दिया जाएगा।
बच्ची दाएं हाथ से लिखती है जो कि पूरी तरह सुरक्षित है। ऐसे में उसे स्कूल में लिखने में किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी।
न तेज स्पीड, न गड्ढा और न ही स्पीड ब्रेकर
जिन परिस्थितियों में हादसा हुआ उसे लेकर सोलंकी दंपती अचरज में हैं। बकौल राकेश गांव में खराब सड़क व स्पीड ब्रेकर की वजह से रोज यूं भी 15-20 किमी की स्पीड से ही बाइक चलाते हैं। घट्टी गांव की जिस सड़क से गुजरे थे, वहां कुछ समय पहले स्पीड ब्रेकर पार कर चुके थे। बच्ची को पीछे बैठाने के बाद भी बाइक की गति धीमी थी और सड़क भी अच्छी थी।
वहां न स्पीड ब्रेकर और न गड्ढ़ा था। इस दौरान कोई चौराहा, टर्न या ओवरटेक से संतुलन बिगड़ने जैसी स्थिति भी नहीं थी। बच्ची का अचानक गिरना हमारे सहित आसपास के लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं। क्या स्कार्फ चिकने कपड़े का था, जिससे बच्ची फिसली, इस पर मां ने कहा कि वह दानेदार सूती कपड़े का था। ऐसे में स्कार्फ से फिसलन जैसी स्थिति भी नहीं थी।
डॉक्टर को भी दुख, बोले- हमें अफसोस बच्ची का हाथ नहीं जोड़ सके
इस तरह के कई केसों में शरीर से अलग हो चुके अंग को जोड़ चुके डॉ. अश्विन दास अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि स्थिति ऐसी नहीं थी कि बच्ची का हाथ फिर से जोड़ सकें। दरअसल, कटे हुए हाथ में सिकुड़न आ गई थी। ऐसी स्थिति में लेक्टिक एसिड बनता है। ऐसे में किसी भी अंग को जोड़ नहीं सकते। अगर ऐसा किया तो शॉक सिंड्रोम के कारण पेशेंट के लंग्स किडनी, ब्रेन, आंख, किडनी के सारे फंक्शन बिगड़ जाते हैं, जिससे मौत भी हो सकती है। बच्ची अब ठीक है। खाने-पीने लगी है। उसे तीन-चार दिनों बाद डिस्चार्ज कर दिया जाएगा, लेकिन घाव को भरने में अभी समय लगेगा। उसके बाद ही नकली हाथ प्लान किया जा सकता है।
इंदौर के डॉक्टर और प्लास्टिक रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन अश्विन दास से जानिए तत्काल क्यों नहीं जोड़ सके हाथ…
हमें फोन आया था कि एक बच्ची को इंदौर लाया जा रहा है, उसका हाथ धड़ से अलग हो गया है। हमने बच्ची के माता-पिता से फोन पर बात की। उन्होंने देहाती बोली में बताया कि बच्ची की उम्र 4 साल है। शाम करीब 6.30 बजे परिवारवाले बच्ची को लेकर अस्पताल पहुंचे। उसकी हालत देख हम भी हैरान हो गए। वो बहुत ही छोटी है।
हाथ को प्रिजर्व करके लाया गया था, इसलिए हमने हाथ जोड़ने की तैयारी कर ली थी। बच्ची की हालत गंभीर थी। उसे जो तकलीफ हो रही थी, वह शब्दों में नहीं बता सकते। हाथ में मेहंदी लगी थी, यह देख वहां मौजूद सभी की आंखें नम हो गईं थी।
हादसा दोपहर 12.30 बजे हुआ। हाथ धड़ से कटा नहीं था, कंधे के 2 इंच आगे से उखड़ गया था। इतनी सी उम्र में मांसपेशियां, हडि्डयां सहित सारे ऑर्गन्स बहुत कोमल होते हैं। पहिया कई बार घूमने से हाथ ऐसा उखड़ा कि शरीर छिन्न-भिन्न हो गया था, नसें लटक रही थीं। कंधे से भी कटे हुए हिस्से में चार फ्रैक्चर थे। काफी खून बह गया था। हीमोग्लोबिन 6 रह गया था। हालत बिगड़ती जा रही थी।
असल में खरगोन से निकलते समय परिवार को किसी ने यह सलाह दी थी कि इंदौर में बच्ची की सर्जरी होगी। ऑपरेशन खाली पेट ही होता है, इसलिए इसे पानी मत पिलाना। यही वजह है कि परिवार ने पानी तक नहीं दिया और वह बच्ची घबराती गई। डिहाइड्रेशन का भी शिकार हो चुकी थी, इस कारण उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ी थी।
इस स्थिति में हाथ जोड़ना संभव नहीं था। हमारी प्रायोरिटी बच्ची की जान बचाना था। परिवार से बात कर इलाज शुरू किया। घाव की ठीक तरह से ड्रेसिंग कर जांचें कराईं। ट्रीटमेंट दिया। कुछ घंटों बाद उसे यूरिन पास होने लगी और किडनी का फंक्शन भी नॉर्मल हो गया। 16 अगस्त को घाव की क्लोजिंग सर्जरी की ताकि भविष्य में नकली हाथ लगाया जा सके।
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