छत्तिश्गढ़
कोयला नहीं मिला तो 40 हजार करोड़ का नुकसान,राजस्थान विद्युत् निगम के CMD बोले- विकास की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है
राजस्थान के ताप बिजली घरों को लगातार चालू रखने के लिए छत्तीसगढ़ के संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम-RVUN के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राजेश कुमार शर्मा छत्तीसगढ़ के दौरे पर हैं। उन्होंने बुधवार को सरगुजा जाकर कलेक्टर, आईजी और पुलिस अधीक्षक के साथ बैठक की। दोपहर बाद रायपुर आकर उन्होंने मुख्य सचिव अमिताभ जैन और मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुब्रत साहू से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने राजस्थान की छत्तीसगढ़ में आवंटित कोयला खदानों में उत्पादन शुरू कराने में सहयोग मांगा। शाम को दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में RVUN के CMD राजेश कुमार शर्मा ने कहा, यहां से कोयला नहीं मिला तो राजस्थान में 40 हजार करोड़ रुपए का निवेश बेकार चला जाएगा।
आपको मिली परसा ईस्ट केते बासन के विस्तार और परसा कोयला खदान शुरू होने का स्थानीय स्तर पर विरोध है। सरकार भी शायद हिचक रही है?
ऐसा होना नहीं चाहिए। ये खदानें हमें 2007 में आवंटित हुईं। इसके आधार पर हमने राजस्थान में दो बड़े थर्मल पॉवर प्लांट लगा दिए। अब कहा जाए कि इन खदानों में काम नहीं होगा तो वह बड़ा सरकारी निवेश तो डूब जाएगा। उन परियोजनाओं पर लगभग 40 हजार करोड़ रुपए लगे हैं। 350 कराेड़ रुपए तो हमने परसा कोयला खदान के लिए सरकार के पास जमा कराएं हैं। इतना सब करने के बाद हम इसको बाइंडअप तो नहीं कर सकते।
कोयले के लिए जंगलों में खनन जरूरी है क्या? मध्य प्रदेश में कई गैर वन क्षेत्रों में भी तो खदाने हैं। वहां से लिया जा सकता था?
वहां खदाने दूसरों को मिली हुई हैं। हमको तो परसा में आवंटित की गई। अधिकतर खदाने जंगलों में ही हैं। यह भी है कि विकास की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है। इसी देश में कितने बांध बने, खदाने खुलीं, कितने लोगों को विस्थापित किया गया। आज उन बांधों और खदानों का फायदा तो पूरा देश उठा ही रहा है। कितनी सड़कों और रेल नेटवर्क के लिए पेड़ काटने पड़े। लेकिन लोगों को और देश को उसका फायदा ही मिला।
संसद में कहा जा रहा है कि 2030 तक कोयले पर निर्भरता खत्म कर देनी है। आप नई खदान के सहारे निवेश बढ़ा रहे हैं?
नहीं यह गलत है। हाल-फिलहाल कोयला आधारित बिजली घरों पर निर्भरता कम नहीं होने जा रही है। रिनवेबल एनर्जी के दौर में भी हमें 50 से 55% ताप बिजली घरों का बेस रखना होगा। पवन चक्की हर समय बिजली पैदा नहीं कर पाएगी। सौर ऊर्जा से अधिक से अधिक 10 घंटे बिजली बनाई जा सकती है। ऐसे में कोयला आधारित ताप बिजली घर नहीं रहे तो बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। कम से कम 2050 तक तो थर्मल पॉवर प्लांट कहीं नहीं जाने वाले।
कोयला आधारित बिजली घरों में कॉर्बन प्रदूषण भी बड़ी समस्या है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सरकार की प्रतिबद्धताएं हैं?
सरकार ने 2070 तक कॉर्बन उत्सर्जन को शून्य पर ले जाने का लक्ष्य तय किया है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कॉर्बन उत्सर्जन पर हल्ला करने वाले देश भी यू टर्न ले चुके हैं। जर्मनी और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में नये थर्मल पॉवर प्लांट बन रहे हैं। उनके यहां मौजूद कोयले का उपयोग वे बिजली उत्पादन में करेंगे। यह किसी देश के विकास की पहली जरूरत है। ऐसे में हमें भी अपने पास मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर विकास करना होगा। कॉर्बन उत्सर्जन कम करने के लिए नई पीढ़ी की मशीनरी का उपयोग किया जा सकता है।
परसा ईस्ट केते बासन में अभी उत्पादन चालू है। लेकिन पिछले दिनों बने हालात की वजह से उत्पादन कम हुआ है। अभी हमें यहां से 4 से 5 रैक कोयला रोज मिल पा रहा है। हमारी जरूरत इस एक खदान से 10-12 रैक की है। हमारी कोशिश है कि इसे जल्दी से जल्दी सामान्य किया जाए। परसा कोयला खदान में तमाम अनुमतियों के बावजूद काम शुरू नहीं हो पा रहा है। यहां से भी हमे दो-तीन रैक कोयला रोज मिलना है। अभी रबी सीजन आ रहा है, इसमें उत्पादन बढ़ाना होगा। राजस्थान में चार हजार 340 मेगावाट की बिजली परियोजनाएं इन्हीं कैप्टिव कोल ब्लॉक्स से चलती हैं। ऐसे में हमें कैसे भी करके उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा।
यहां खनन का भारी विरोध है। लोगों को जंगलों का उजड़ना और गांवों का विस्थापित होना मंजूर नहीं है। आप सीधे उनसे बात क्यों नहीं करते?
वहां कुछ समूह ही इसका विरोध कर रहे हैं। वहां ग्रामीणों से उन्होंने खुद बातचीत की है। उनको बताया है कि खदान चालू होने से वहां किस तरह का विकास होगा। कंपनी ने वहां स्कूल खोला है। हमारी योजना उस क्षेत्र में एक 100 बेड के मल्टी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल खोलने की है। परसा कोयला खदान की अनुमति के साथ जुड़ी हुई है। उस क्षेत्र में कुल आबादी दो हजार होगी। 1700 से अधिक लोगों ने अपने हस्ताक्षर के साथ मांगपत्र बनाकर मुख्यमंत्री को दिया है कि वहां खदान खोली जानी चाहिए।
राजस्थान की सरकारी कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को तीन कैप्टिव कोयला खदाने आवंटित हैं। परसा ईस्ट केते बासन, केते एक्सटेंसन और परसा। इसमें से परसा ईस्ट केते बासन में उत्पादन चालू है। कंपनी केते एक्सटेंसन और परसा कोल ब्लॉक में उत्पादन शुरू करने की कोशिश में है। इन दो परियोजनाओं में छत्तीसगढ़ के सबसे समृद्ध वन क्षेत्रों में से एक हसदेव अरण्य का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा है। यह हसदेव और बांगो नदियों का जलग्रहण क्षेत्र है। हाथियों का पुराना रहवास है।
ऐसे में यह बेहद संवेदनशील भी है। इस परियोजना से कम से कम छह गांवों पर विस्थापन का खतरा है। ऐसे में स्थानीय ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। वहां धरना अब भी जारी है। विरोध की यह आग प्रदेश के दूसरे हिस्साें में भी पहुंच चुकी है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सीधे राहुल गांधी से सवाल हो चुके हैं। सरकार के भीतर विरोध के स्वर उठे। ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर उन खदानों का आवंटन रद्द करने का आग्रह किया है जिसमें उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है। केंद्रीय कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी ने पिछले महीने जयपुर में कहा था, केंद्र सरकार ने इसे रद्द नहीं करने का फैसला किया है। इसके बाद राजस्थान सरकार, छत्तीसगढ़ पर इन परियोजनाओं काे शुरू कराने का दबाव बढ़ा रही है।
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