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एक इंटेलिजेंस लीक ने दिलाई बांग्लादेश को आजादी..

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‘अगर आप अपने दुश्मन की कमजोरी जानते हैं…तो आप आधी जंग जीत चुके हैं।’

हजारों साल पुरानी चीनी दार्शनिक सुन त्जु की किताब ‘आर्ट ऑफ वॉर’ में लिखी ये लाइन डिजिटल होते जा रहे वॉरफेयर के दौर में भी बिल्कुल सटीक बैठती है।

रूस-यूक्रेन युद्ध में अपने सैनिक भेजने की बात से अब तक इनकार करता रहा अमेरिका अब अपने ही एक सैनिक के हाथों लीक हुए खुफिया दस्तावेजों के चलते बैकफुट पर है।

रूस के खिलाफ अमेरिका और यूरोप की रणनीति हो या अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की अपने ही सहयोगी देशों में जासूसी…सोशल मीडिया पर लीक हुए अमेरिकी वॉर स्ट्रैटजी सीक्रेट्स को हाल के दिनों का सबसे बड़ा इंटेलिजेंस लीक माना जा रहा है।

कुछ एक्सपर्ट्स यहां तक मानते हैं कि इन रणनीतियों के सार्वजनिक होने से भले युद्ध पर खास असर न पड़े, लेकिन अमेरिकी और यूरोपीय देशों के सैनिकों की यूक्रेन में मौजूदगी को रूस मुद्दा बना सकता है।

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आज जब कुछ एक्सपर्ट रूस-यूक्रेन जंग में तीसरे विश्व युद्ध की आहट देखते हैं, तब इस तरह के इंटेलिजेंस लीक दुनिया की तस्वीर बदल सकते हैं।

मगर ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है…

क्या आप जानते हैं कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत का सबसे बड़ा हथियार पाकिस्तान का एक इंटेलिजेंस लीक था?

क्या आप जानते हैं कि 1962 में एक इंटेलिजेंस लीक ने ही दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचा लिया था?

जानिए, कब हुआ था दुनिया का पहला इंटेलिजेंस लीक…और कब-कब देशों के सीक्रेट लीक होने की वजह से ग्लोबल पॉलिटिक्स और पावर की तस्वीर ही बदल गई…

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पहले जानिए, सबसे ताजा इंटेलिजेंस लीक का सच

अमेरिकी एयरमैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म डिस्कॉर्ड पर लीक किए खुफिया पेपर्स

अमेरिका के मैसाचुसेट्स नेशनल गार्ड के इंटेलिजेंस विंग में IT स्पेशलिस्ट के तौर पर एयरमैन रैंक पर काम करने वाले 21 वर्षीय जैक टाइक्साइरा रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े खुफिया पेपर्स एक सोशल मीडिया ऐप डिस्कॉर्ड पर लीक कर दिए।

डिस्कॉर्ड एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां एक जैसी रुचि रखने वाले लोग एक चैटरूम बनाकर किसी भी विषय पर बात कर सकते हैं या जानकारी साझा कर सकते हैं।

टाइक्साइरा की गिरफ्तारी के बाद ये खुलासा हुआ है कि इन पेपर्स के लीक होने के बहुत पहले से ही वो डिस्कॉर्ड के चैट रूम्स में खुफिया जानकारियां साझा करता था।

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समझिए, क्यों इन लीक्स की वजह से अमेरिका और यूरोप परेशान हैं

1. अमेरिका का झूठ सामने आया कि उसने यूक्रेन में सैनिक नहीं भेजे

इन दस्तावेजों से पता चला है कि 14 अमेरिकी, 15 फ्रांसीसी और 50 ब्रिटिश सैनिक युद्ध में शामिल हैं। ये स्पेशल फोर्स के सैनिक हैं जो तेजी से विश्व स्तरीय ट्रेनिंग दे सकते हैं।

ये भी पता चला है कि यूक्रेन के 12 ब्रिगेड काउंटर ऑफेंसिव की तैयारी कर रहे हैं। और तो और ये दस्तावेज बताते हैं अब तक युद्ध में 43000 रूसी सैनिकों की जान जा चुकी है और पौने दो लाख से सवा दो लाख रूसी सैनिक घायल हो चुके हैं।

2. मिस्र, हंगरी और सर्बिया जैसे देशों का दोहरा चरित्र भी सामने आ गया

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इस लीक से ये भी पता लगा कि अमेरिका का सहयोगी देश मिस्र रूस को 40 हजार रॉकेट बेचने की तैयारी कर रहा था।

ये भी पता चला है कि यूक्रेन के 12 ब्रिगेड काउंटर ऑफेंसिव की तैयारी कर रहे हैं। और तो और ये दस्तावेज बताते हैं अब तक युद्ध में 43000 रूसी सैनिकों की जान जा चुकी है और पौने दो लाख से सवा दो लाख रूसी सैनिक घायल हो चुके हैं।

2. मिस्र, हंगरी और सर्बिया जैसे देशों का दोहरा चरित्र भी सामने आ गया

इस लीक से ये भी पता लगा कि अमेरिका का सहयोगी देश मिस्र रूस को 40 हजार रॉकेट बेचने की तैयारी कर रहा था।

हंगरी नाटो का सदस्य है और खुले तौर पर अमेरिका का समर्थन करता है। मगर लीक हुए पेपर्स के मुताबिक अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की निगरानी में ये सामने आया है कि हंगरी अमेरिका को नंबर-1 दुश्मन मानता है। इस लीक के बाद हंगरी और मिस्र दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है।

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ये भी खुलासा हुआ है कि रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध का खुले तौर पर विरोध करने वाले देश सर्बिया नें चुपचाप यूक्रेन को सैन्य सामग्री मुहैया कराई है।

कुछ लीक्स चर्चा में आते हैं…कुछ की असलियत पर्दों में ही रह जाती है

1971 में अमेरिका में पेंटागन पेपर्स के नाम से चर्चित एक इंटेलिजेंस लीक में खुलासा हुआ था कि अमेरिका के 4 राष्ट्रपतियों ने वियतनाम युद्ध की सच्चाई जनता और संसद से छुपाई थी।

2003 में सामने आए प्लेम अफेयर ने अमेरिका के इराक पर हमले पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।

2010 में एडवर्ड स्नोडन के जरिये विकिलीक्स पर जारी हुए खुफिया दस्तावेजों में अफगानिस्तान युद्ध से लेकर अमेरिकी एजेंसियों के कैदियों पर टॉर्चर तक को चर्चित कर दिया था।

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पनामा पेपर्स ने दुनिया की बड़ी हस्तियों के काले धन को तो पेगासस पेपर्स ने दुनिया की सरकारों के अवैध सर्विलांस को चर्चा में ला दिया।

लेकिन इनके अलावा कई इंटेलिजेंस लीक्स ऐसे भी हुए हैं जिनकी चर्चा तो कम होती है, मगर उनका असर काफी गहरा रहा है।

जानिए, कौन से थे ये इंटेलिजेंस लीक्स…

आधुनिक विश्व का पहला लीक…जिसने अमेरिकी क्रांति की स्पीड बढ़ा दी

आधुनिक इतिहास में पहला रिकॉर्डेड इंटेलिजेंस लीक 1773 का माना जाता है।

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जून, 1773 में मैसाच्युसेट्स के गवर्नर थॉमस हचिन्सन की लिखी कुछ चिटि्ठयां बॉस्टन गजट में छप गईं।

ये चिटि्ठयां हचिन्सन ने ब्रिटिश सरकार को लिखी थीं, जिनमें ये आगाह किया गया था कि अमेरिकी क्रांतिकारियों को रोकने के लिए सेना बढ़ा दी जाए।

दरअसल, ये चिटि्ठयां एक अज्ञात सूत्र ने दिसंबर, 1772 में अमेरिकी क्रांतिकारी बेंजामिन फ्रैंकलिन को दी थीं। फ्रैंकलिन के एक साथी जॉन एडम्स ने इन्हें जून, 1773 में अखबार में छपवा दिया।

नतीजा ये हुआ कि बॉस्टन में स्थानीय लोगों और ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधियों में तनाव बढ़ गया। 1773 में ही यहां ‘टी एक्ट’ लागू हुआ था जिसके विरोध में दिसंबर, 1773 में बॉस्टन बंदरगाह पर विद्रोह हो गया। इसे इतिहास में ‘बॉस्टन टी पार्टी’ के नाम से जाना जाता है।

इस घटना के बाद क्रांति की आग ऐसी भड़की कि 1776 में अमेरिका ब्रिटेन के चंगुल से आजाद हो गया।

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दुनिया के पहले इंटरकॉन्टिनेंटल बम…जिनका असर ही छुपा लिया गया

आज दुनिया का हर देश इंटर कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल्स को अपनी ताकत मानता है। यानी ऐसी मिसाइल जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक मारक रेंज रखती हो।

मगर द्वितीय विश्व युद्ध के समय ऐसी मिसाइल्स मौजूद नहीं थी। जापान ने 1944 में पहली बार इंटरकॉन्टिनेंटल बम का इस्तेमाल अमेरिका के खिलाफ किया था, मगर वो कभी इन बमों का असर ही नहीं जान पाया।

दरअसल, जापान ने प्रोजेक्ट फू-गो के नाम से अमेरिका पर गुब्बारे बम छोड़े थे। जापान के होन्शू से छोड़े गए हर विशालकाय गुब्बारे के साथ 15 किलो विस्फोटक होता था।

नवंबर, 1944 से अप्रैल, 1945 के बीच जापान ने ऐसे 9300 गुब्बारा बम छोड़े। इन बमों को 9000 किमी. दूर अमेरिका में जाकर फटना था। मगर जापान के पास ऐसा कोई तरीका नहीं था कि वो इन बमों से हुए नुकसान के बारे में पता कर पाए।

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वो पूरी तरह से अखबारों और रेडियो पर ही निर्भर था जो अमेरिका में नुकसान की खबरें दुनिया को पहुंचाते।

अमेरिकी इंटेलिजेंस ने जनवरी, 1945 से इन बमों को इंटरसेप्ट करना शुरू किया था। मई, 1945 में ऑरेगन के ब्लाई शहर में ऐसे एक गुब्बारे की वजह से 6 नागरिकों की जान चली गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूएस मेनलैंड पर यही इकलौती वॉर कैजुअलटी थी।

लेकिन अमेरिकी खुफिया विभाग ने जनवरी, 1945 में ही सभी अखबारों और रेडियो ब्रॉडकास्टर्स को गुप्त मेमो भेजकर सख्त हिदायत दी थी कि इन गुब्बारों के बारे में कोई भी खबर न छापी जाए।

10 मार्च, 1945 को जापान का एक गुब्बारा वॉशिंगटन राज्य के टॉपेनिश शहर में बिजली की ट्रांसमिशन लाइन से टकरा गया था। इसकी वजह से परमाणु बम बनाने के अमेरिकी मैनहटन प्रोजेक्ट की बिजली भी 3 दिन तक कटी रही थी।

मगर फरवरी, 1945 में एक रिपब्लिकन नेता के आर्टिकल छोड़ किसी भी अखबार में इन गुब्बारों और इससे हुए नुकसान का कोई जिक्र ही नहीं हुआ।

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जापान ने पहले तो अनुमान के आधार पर ये प्रचारित किया कि इन बमों से अमेरिका में भारी नुकसान हुआ है। मगर जब अमेरिका से कोई जानकारी ही बाहर नहीं आई तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो गई।

अप्रैल, 1945 तक कागज और हाइड्रोजन गैस की कमी के चलते जापान ने गुब्बारा बम बनाना छोड़ दिया।

क्यूबन मिसाइल क्राइसिस…एक लीक की वजह से ही रूस के इरादे जान पाया था अमेरिका

द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होते-होते जापान पर परमाणु बम गिराकर अमेरिका खुद को सुपर पावर साबित कर चुका था।

हालांकि 1950 का दशक पूरा होने तक रूस भी परमाणु बम बना चुका था। इसी न्यूक्लियर रेस ने दुनिया को सालों तक कोल्ड वॉर में उलझाए रखा।

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1954 से 1956 के बीच अमेरिका जुपिटर नामक मीडियम रेंज बैलिस्टिक मिसाइल बना चुका था। न्यूक्लियर हमला करने में सक्षम ये मिसाइल जमीन, हवाई जहाज और नेवी के शिप्स से भी दागा जा सकता था जिसकी मारक क्षमता 2400 कि.मी. थी।

साल 1958 तक इटली में 30 जुपिटर तैनात किए जा चुके थे और साल 1959 तक 15 मिसाइल तुर्की में भी लग चुके थे। रूस इसे अप्रत्यक्ष आक्रमण मान रहा था।

लिहाजा रूस ने अमेरिका के नाक के नीचे उसके दुश्मन क्यूबा से हाथ मिला लिया। क्यूबा के राष्ट्राध्यक्ष फिदेल कास्त्रो ने चुपके से रूसी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइलों की क्यूबा में तैनाती की तैयारी शुरू कर दी।

मगर ये जानकारी अमेरिका को पहले ही मिल चुकी थी। जरिया था रूसी मिलिट्री इंटेलिजेंस का कर्नल ओलेग पेन्कोव्स्की।

अक्टूबर 1971 से लेकर दिसंबर की शुरुआत तक मुक्ति वाहिनी ने पाकिस्तानी सेना के पसीने छुड़ा दिए थे। पाकिस्तान सितंबर के महीने से ही भारत पर आक्रमण करने का प्लान बना रहा था जिसका नाम था ऑपरेशन चंगेज खान।

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मुक्तिवाहिनी की सफलता से घबराकर पाकिस्तान ने 3 दिसंबर, 1971 को उत्तर भारत के 11 शहरों पर भारतीय लड़ाकू जहाज के अड्डों पर एयर रेड शुरू कर दिया। लिहाजा आधिकारिक तौर पर भारत ने पाकिस्तान से युद्ध का बिगुल बजा दिया।

6 दिसंबर को भारतीय सेना की तरफ से जहीर को सूचना मिली की उनके द्वारा दी गई खुफिया जानकारी बहुत काम आई है। भारत की सेना पाकिस्तान की सीमा में 56 कि.मी. तक अंदर घुस चुकी थी।

16 दिसंबर को पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने भारत और मुक्ति वाहिनी के सामने सरेंडर कर दिया।

पाकिस्तान का बंटवारा हो गया और स्वतंत्र बांग्लादेश में कर्नल जहीर शहीद भारतीय सैनिकों के योगदान को पहचान दिलाने की मुहिम में लग गए। करीब 300 सैनिकों को बांग्लादेश सरकार ने सम्मानित किया है।

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