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अविनाश साबले: पिता ईंट भट्टा में मज़दूर, बेटे ने बाधाओं को पार कर पेरिस ओलंपिक में ऐसे रचा इतिहास

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अविनाश साबले 3000 मीटर स्टीपलचेज़ यानी बाधादौड़ के फ़ाइनल में पहुंच गए हैं.

अविनाश ऐसा करने वाले पहले भारतीय पुरुष हैं.

स्टीपलचेज़ में फ़ाइनल के लिए तीन रेस यानी हीट होती हैं. हर रेस से पांच एथलीट फ़ाइनल में पहुंचते हैं. इस तरह फ़ाइनल में पहुंचने वालों की संख्या 15 होती है.

स्टीपलचेज़ में फाइनल आठ-नौ अगस्त की रात को सवा एक बजे के क़रीब होगा.

अविनाश ने पेरिस ओलंपिक में जो इतिहास रचा है, उसकी नींव कई साल पहले से रखनी शुरू हो गई थी. अविनाश का संघर्ष इसकी गवाही देता है.

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स्टीपलचेज रेस में बर्मिंघम के रनिंग ट्रैक पर लाखों भारतीयों की एक मेडल की उम्मीद पर खरा उतरने एक युवा दौड़ लगा रहा था.

इन सबसे अनजान उस युवक के माता-पिता महाराष्ट्र के बीड जिले में एक छोटे से गाँव के खेत में रोपनी के काम में लगे हुए थे.

तीन हजार मीटर के स्टीपलचेज रन के शुरुआती दौर में तो यह युवक चौथे स्थान पर था. लेकिन अंतिम 500 मीटर के दौड़ में उसने ऐसी गति पकड़ी कि मानो उसने केन्याई धावकों के गले से मेडल छीन लिया हो.

हालांकि गोल्ड मेडल से तो वो युवक माइक्रो सेकेंड्स से चूक गया लेकिन उसने अपनी परफॉरमेंस को अप्रत्याशित और ऐतिहासिक बना दिया.

ये भारत के अविनाश साबले की कहानी है. फ़ाइनल में पहुंचे अविनाश से भारत को अब मेडल की उम्मीद है.

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लेकिन अविनाश की यात्रा कभी आसान नहीं रही.

स्कूल की धूल भरी सड़कों पर नंगे पाँव दौड़ते हुए पेरिस के ट्रैक तक पहुँचने की अविनाश की कहानी बहुत कठिन रही है.

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