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‘घूस लेने के लिए कोई विशेषाधिकार नहीं’, वोट के बदले नोट लेने पर अब MP-MLA पर भी चलेगा मुकदमा..
सुप्रीम कोर्ट का नया निर्णय यह सुनिश्चित करेगा कि राजनीतिक प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार को रोका जाए और चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता और ईमानदारी को सुनिश्चित किया जाए। इससे सांसदों और विधायकों को जनप्रतिनिधि होने के नाते अपने कार्यों को सच्चाई और निष्ठा के साथ निभाने की ज़िम्मेदारी महसूस करने में मदद मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला सांसदों के लिए सख्त संदेश है कि राजनीतिक प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यह फैसला नकली वोटिंग के खिलाफ सख्ती से खड़ा है और यह राजनीतिक दलों को वोट खरीदने और बेशिक्की करने की प्रथा से अंत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले फैसले को पलटकर इस तरह के मामले में सख्ती से कानूनी कार्रवाई का समर्थन किया है। अगर कोई विधायक या सांसद पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देता है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है और वह अपने जनप्रतिनिधि हासिल प्रिविलेज के तहत कानूनी छूट से बच नहीं पाएगा।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के इस बयान के अनुसार, उन्हें पिछले फैसले से असहमति है, जिसमें वोट के बदले नोट मामले में सांसदों को मुकदमे से छूट की गई थी। उनका कहना है कि वे उस फैसले के खिलाफ हैं और वह कोर्ट के पिछले फैसले को खारिज कराने की कोशिश कर रहे हैं।
सांसदों को अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट मिली है, इसका यह मतलब है कि इस तरह के कार्यों के लिए उन पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी।
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