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मध्य प्रदेश

इंदौर जिलाध्यक्ष चुनाव: दो मंत्रियों की लड़ाई से तीसरे को फायदा! जानें पूरी सियासी हलचल

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इंदौर की राजनीति में इन दिनों जिलाध्यक्ष पद को लेकर बड़ी हलचल देखी जा रही है। शहर अध्यक्ष की नियुक्ति में दो मंत्रियों की आपसी खींचतान का फायदा तीसरे नेता को मिला। विधायक गोलू शुक्ला और रमेश मेंदोला की पसंद को आखिरकार संगठन ने तवज्जो दे दी, लेकिन यह पूरा घटनाक्रम मध्यप्रदेश भाजपा की अंदरूनी राजनीति में एक नया मोड़ ले आया है।

कैसे शुरू हुआ विवाद?

इंदौर में भाजपा संगठन को लेकर पहले से ही गुटबाजी जारी थी, लेकिन जिलाध्यक्ष की नियुक्ति ने इसे और बढ़ा दिया।

  • विधायक रमेश मेंदोला और गोलू शुक्ला ने अपनी-अपनी पसंद के उम्मीदवार को आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश की।
  • दोनों नेताओं के बीच सियासी रस्साकशी इतनी बढ़ी कि मामला प्रदेश नेतृत्व तक पहुंच गया।
  • संगठन ने अंततः संतुलन बनाते हुए एक तीसरे उम्मीदवार को आगे बढ़ा दिया, जिससे न केवल गुटबाजी शांत हुई बल्कि नए समीकरण भी बने।

तीसरे नेता को कैसे हुआ फायदा?

जब दो गुटों के बीच टकराव बढ़ता है, तो अक्सर तीसरे को लाभ मिलता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ:

  • पार्टी हाईकमान ने किसी एक पक्ष को पूरी तरह समर्थन देने के बजाय तीसरे विकल्प पर मुहर लगा दी।
  • इससे गुटबाजी खुलकर बाहर नहीं आ सकी और दोनों ही पक्षों को संतुलित रखा गया।
  • तीसरे नेता, जो पहले बैकफुट पर थे, अब संगठन के अंदर एक नई पहचान के साथ उभरकर सामने आए हैं।

भाजपा संगठन के लिए क्या मायने रखता है यह फैसला?

इंदौर भाजपा का यह फैसला सिर्फ एक जिलाध्यक्ष नियुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं:

  1. गुटबाजी का असर: पार्टी के अंदर स्पष्ट गुटबाजी दिखी, जिससे आगामी चुनावों में संगठन को एकजुट करना चुनौती होगी।
  2. भविष्य के समीकरण: यह फैसला भविष्य में मंत्री पद और अन्य राजनीतिक नियुक्तियों को भी प्रभावित कर सकता है।
  3. संगठन में संतुलन: पार्टी ने फिलहाल दोनों पक्षों को नाराज किए बिना समाधान निकाल लिया, लेकिन क्या यह लंबे समय तक टिकेगा?

निष्कर्ष:

इंदौर भाजपा में जिलाध्यक्ष की कुर्सी को लेकर चली इस सियासी उठापटक ने यह दिखा दिया कि पार्टी में गुटबाजी अब भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। दो बड़े नेताओं की खींचतान से तीसरे नेता को फायदा जरूर हुआ, लेकिन इससे संगठन में नई राजनीतिक रणनीतियों की जरूरत भी महसूस होने लगी है। अब देखना होगा कि यह फैसला आगामी चुनावी समीकरणों को कैसे प्रभावित करता है।

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