छत्तिश्गढ़
मंत्री कवासी लखमा बोले- भाजपा कार्यकाल में सबसे ज्यादा हुए धर्मांतरण..
छ्त्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे पर भाजपा नेताओं पर जमकर बरसे हैं। कोंडागांव जिले में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि, कांग्रेस सरकार के इन 4 सालों के कार्यकाल में एक भी आदिवासी ईसाई नहीं बना है। ये बीज भाजपा के कार्यकाल में बोया हुआ है। 15 सालों तक प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। तब पूरे छत्तीसगढ़ में जमकर धर्मांतरण हुआ है। उन्होंने पूर्व मंत्री और भाजपा के नेता केदार कश्यप पर भी कई आरोप लगाए हैं।
मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि, बस्तर की सारी 12 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास एक भी सीट नहीं है। लोकसभा सीट भी इनकी नहीं है। इसलिए अब ये भाजपा के नेता आदमी से आदमी को लड़वा रहे हैं। आदिवासियों के भाई-भाई को लड़वा रहे हैं। उन्होंने भाजपा नेता केदार कश्यप पर आरोप लगाते कहा कि, जब उनकी सरकार थी और केदार कश्यप भाजपा सरकार के समय मंत्री थे, तो उस समय धर्मांतरण सबसे अधिक हुआ है।
कवासी लखमा ने नारायणपुर की घटना का जिक्र करते कहा कि, पुलिस जवानों को आदिवासियों को मारने का अधिकार किसने दिया है? ऐसा कृत्य करना सही नहीं है। ऐसा करने वाले नाथूराम गोडसे को मानने वाले लोग हैं। कवासी लखमा ने कहा कि, भाजपा शासनकाल में चर्च बने हैं। हम तो देवगुड़ी बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि, बस्तर में शांति से रहना है। कानून को हाथ में नहीं लेना है।
आबकारी मंत्री कवासी लखमा कोंडागांव जिले के केशकाल ब्लॉक के खुटपदर में माता देवगुड़ी उद्घाटन में शामिल होने पहुंचे थे। उनके साथ क्षेत्रीय विधायक संतराम नेताम भी मौजूद थे। कवासी लखमा ने लोगों से कहा कि, हमें अपनी संस्कृति से जुड़ा रहना चाहिए। देवगुड़ी और मातागुड़ी में जाकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए। मंत्री ने इस कार्यक्रम में मौजूद लोगों की समस्याएं भी सुनी। जिसका समाधान करने आश्वासन दिया है।
धर्मातरण को लेकर छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में पिछले कई दिनों से माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। इस दौरान हमले और झड़प भी हुई हैं। इससे पहले 18 दिसंबर को ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को उनके गांवों से निकाल दिया गया था, जिसके बाद से तनाव जैसे हालात बने हुए हैं।
मामले को लेकर एसपी सदानंद कुमार ने बताया कि आदिवासी समाज के लोगों ने बैठक बुलाई थी। उसमें उनके लीडर्स से कलेक्टर के चैम्बर में हम सब ने बात भी की थी, मगर उसी दौरान कुछ लोग चर्च में तोड़फोड़ करने पहुंच गए। ये पता चलने पर मैं वहां गया। तभी मुझ पर हमला हुआ। फिर हमने लोगों को समझाइश दी। इस केस में कार्रवाई की जाएगी।ईसाई बन चुके आदिवासियों और मूलधर्म के आदिवासियों के बीच रीति-रिवाजों को नहीं मानने, गायता पखना (इसे ईश्वर का स्वरूप मानकर विवाद का निपटारा किया जाता है) को नहीं मानने जैसे झगड़े तो हैं ही, सबसे बड़ा झगड़ा है शव नहीं दफनाने देने का है। ईसाई धर्म मान चुके व्यक्ति के शव को मूलधर्म के आदिवासी अब गांव की सार्वजनिक जमीन पर दफनाने नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि ईसाई धर्म के व्यक्ति की कब्र होने से जमीन दूषित हो जाएगी। हर महीने इस तरह के विवाद के कई मामले बस्तर के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रहे हैं। ईसाई बन चुके आदिवासी अब आरोप लगा रहे हैं कि उनके परिवार के लोगों की कब्र खोदकर शव गांव से बाहर फेंके जा रहे हैं। 1 से 2 जनवरी के बीच जो खूनी संघर्ष हुआ उसका मूल कारण भी नारायणपुर के भाटपाल में 23 अक्टूबर को एक कनवर्टेड महिला के शव को दफनाने नहीं देना है। करीब 3 दिन यहां जमकर हंगामा हुआ था और वहीं से दोनों गुट अपने-अपने लोगों को एकत्र कर रहे थे। पुलिस-प्रशासन को भी इसकी जानकारी थी, लेकिन कोई आधार नहीं होने के कारण कार्रवाई नहीं की गई।
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