मध्य प्रदेश
MP में डामर के नाम पर हो रहा फर्जीवाड़ापूर्व कॉन्ट्रेक्टर ने सीएम से की शिकायत, रिफाइनरीज के बनवा रहे फर्जी बिल..
मप्र में बार-बार खराब होती सड़कें अक्सर राजनीतिक बहस का मुद्दा बन जातीं हैं। राजधानी भोपाल की सड़कों लेकर कई बार राजनीति होती रहती है। मप्र में सड़कों के बार-बार खराब होने और क्वालिटी को लेकर ठेकेदारी छोड़ चुके कॉन्ट्रेक्टर ने सीएम से शिकायत कर अफसरों की लापरवाही उजागर की है। पूर्व ठेकेदार ने अपने लेटर में लिखा कि मप्र में डामर के नाम पर फर्जी बिल लगाए जा रहे हैं।
उज्जैन के रहने वाले ठेकेदार इकबाल हुसैन ने अपने शिकायती पत्र में लिखा- सड़क बनाने में बिटुमेन (डामर) का सबसे जरूरी होता है। मप्र में पिछले कई सालों में कई सड़कें बनीं हैं लेकिन गुणवत्तायुक्त डामर का उपयोग ना होने से सडकें जल्दी खराब होती जा रहीं हैं। मप्र के पीडब्ल्यूडी विभाग ने आज तक डामर (Bitumen) की गुणवत्ता के लिए कोई गाइडलाइन नहीं बनाई है। वर्तमान समय में जारी होने वाले टेंडर्स में सालों पूर्व जारी की गई MORTH (Ministry of road transport and Highway) की 5वीं रिवीजन गाइडलाइन का अनुसरण करने को कहा जाता है। इस गाइडलाइन में PSU का ही डामर उपयोग करने का प्रावधान है।
मप्र ने नहीं बनाई कोई गाइडलाइन
ठेकेदार का कहना है कि केन्द्र सरकार ने पिछले सालों में अपनी गाइडलाइन कई बार बदली लेकिन मप्र शासन ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। मप्र शासन की अपनी कोई गाइडलाइन भी नहीं हैं। इस वजह से सड़क बनाने वाले ठेकेदार डामर के नाम पर जीएसटी की चोरी और फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। ठेकेदार महाराष्ट्र, गुजरात के इंपोर्टर्स से डामर लेकर, सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के फर्जी बिल लगा रहे हैं।
कैसे हो रहा डामर फर्जीवाड़ा
सड़क बनाने में उपयोग होने वाला डामर रिफाइनरीज में तैयार होता है। मप्र की जरूरत के मुताबिक रिफाइनरी से डामर नहीं मिल पाता। और ठेकेदार सस्ते में डामर खरीदने के चक्कर में महाराष्ट्र, गुजरात से डामर खरीदते हैं। और सरकारी उपक्रमों की ऑइल कंपनियों के फर्जी बिल तैयार कराकर भी देते हैं। इससे खराब क्वालिटी का डामर सड़क निर्माण में उपयोग होता है और दूसरी तरफ बडे़ पैमाने पर जीएसटी की चोरी होती है।
इम्पोर्ट होने वाले डामर की होती है क्वालिटी टेस्टिंग
ठेकेदार ने बताया कि रिफाइनरी के डामर की तुलना में इम्पोर्ट किए गए डामर की क्वालिटी अच्छी होती हैं क्योंकि इंपोर्ट किए जाने वाले डामर को पोर्ट पर इंडियन कस्टम डिपार्टमेंट द्वारा क्वालिटी टेस्ट कराना पड़ता है।
रिफाइनरी से डामर लेकर निकलने वाले टेंकर में Ex MI सिस्टम होता है। रिफाइनरी से डामर लेकर निकलने वाले टेंकर को सील नहीं किया जाता। ऐसे में टेंकर का स्टाफ और ट्रांसपोर्टर रास्ते में डामर में मार्बल की फाइन डस्ट मिला देते हैं। और उसी डस्ट मिक्स डामर से ही ठेकेदार जब सड़क बनाने में इस्तेमाल करते हैं तो बारिश के दौरान पानी से डस्ट अलग हो जाती है और रोड़ टूटने लगता है। प्रायवेट इम्पोर्टर टेंकर पर अपनी सील लगाकर देते हैं। यही नहीं प्रायवेट ऑपरेटर्स जीपीएस के जरिए टेंकर की मॉनिटरिंग करती है।
इंपोर्टेड डामर के सप्लायर्स का नेटवर्क एमपी में सक्रिय
इंपोर्टेड डामर के कई सप्लायर पूरे एमपी में कई सालों से सक्रिय हैं। एक सीजन में करीब 500 से 1000 करोड़ का इंपोर्टेड डामर मध्यप्रदेश में बेचा जाता है। डामर को लेकर कोई नियम न होने के कारण ठेकेदार कहीं से भी डामर ले लेते हैं। डामर के सप्लायर सरकारी रिफायनरी के बिल के साथ डामर देने को राजी हो जाते हैं। इसका अधिकांश भुगतान नकद में किया जाता है।
क्यूआर कोड वाला फर्जी बिल
रिफाइनरीज के नकली बिल बकायदा क्यूआर कोड के साथ तैयार किये जाते हैं। जिसे स्केन करने पर रिफायनरी का फर्जी वेब पेज खुलता है। जिस पर डामर सप्लाई का फर्जी बिल नंबर और लॉट नंबर दिखाई देता है। ठेकेदार इकबाल का कहना है कि उन्होंनें डामर एजेंट्स से बात की तो पता चला कि सरकारी रिफाइनरी से 20 प्रतिशत सस्ता डामर 24 घंटे में सप्लाई की गारंटी के साथ देने का वादा किया जाता है। साथ ही क्वालिटी टेस्ट कराने के बाद भुगतान करने पर भी डामर एजेंट तैयार हो जाते हैं ।
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