राजस्थान
SMS में रोबोट करेगा कैंसर जैसी बीमारियों का फ्री इलाज,25-25 करोड़ की दो मशीनें खरीदीं…
जयपुर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल SMS (सवाई मानसिंह हॉस्पिटल) अब हाईटेक होने जा रहा है। यहां रोबोट के जरिए सर्जरी की शुरुआत होगी। इससे कैंसर और हर्निया की सर्जरी भी चिरंजीवी योजना के तहत फ्री में की जा सकेगी। इसके लिए 25-25 करोड़ रुपए की दो रोबोट मशीनें अगले एक-दो सप्ताह में आ जाएंगी। राजस्थान में सरकारी अस्पताल में ऐसी सुविधा पहली बार मिलने जा रही है।
दोनों मशीनें एसएमएस हॉस्पिटल के यूरोलॉजी और जनरल सर्जरी विभाग में रहेंगी। वहीं, इस मशीन को खरीदने पर सवाल भी उठने लगे हैं। आरोप लगे हैं कि जिस टेंडर प्रक्रिया के जरिेए ये मशीनें खरीदी गईं। उसमें शर्तें ही ऐसी रखी गईं, जिसे एक ही कंपनी पूरी कर रही थी।
राजस्थान में अभी रोबोटिक सर्जरी कुछ चुनिंदा प्राइवेट हॉस्पिटल में होती है। इसके अलावा दिल्ली, गुड़गांव, मुंबई सहित कई दूसरे शहरों में भी रोबोट से सर्जरी होती है। रोबोटिक सर्जरी अधिकांश तौर पर छोटे ऑपरेशन के लिए उपयोग की जा रही है। ये कैंसर, यूरोलॉजिकल-प्रोस्टेट और जनरल सर्जरी के लिए बेहतर तरीका माना जा रहा है।एसएमएस मेडिकल कॉलेज में जनरल सर्जरी के प्रोफेसर डॉ. जीवन कांकरिया ने बताया- रोबोटिक सर्जरी डे-केयर सर्जरी के लिए सबसे अच्छी तकनीक है। इस मशीन के जरिए मरीज के शरीर में बहुत ही छोटे-छोटे छेद करके बड़ी से बड़ी सर्जरी कर दी जाती है। इससे मरीज को दर्द कम होता है। ब्लड भी कम बहता है। इसके साथ ही वह सामान्य हाथ या दूरबीन से की जाने वाली सर्जरी की तुलना में जल्दी रिकवर होता है।जयपुर एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. राजीव बगरहट्टा ने बताया- अगले एक सप्ताह के अंदर मशीन के जयपुर में आने की उम्मीद है। उसके बाद उसे इंस्टॉल करने में करीब एक सप्ताह का समय लगेगा। इसके बाद डॉक्टरों को सिमुलेटर पर इस मशीन से सर्जरी करने की ट्रेनिंग दी जाएगी। इस ट्रेनिंग में करीब 3 सप्ताह का समय लग सकता है।
अप्रैल से मरीजों की सर्जरी शुरू होने की संभावना
डॉ. बगरहट्टा ने बताया- मशीन इंस्टॉल करने और डॉक्टरों की ट्रेनिंग देने के बाद डॉक्टरों को प्रैक्टिकल के लिए देश के दूसरे राज्यों के हॉस्पिटल में भेजा जा सकता है। उन्हें वहां मशीन कैसे ऑपरेट होती हैं। उसका लाइव सेशन देखने को मिलेगा। सभी प्रक्रिया पूरी होने के बाद हम उम्मीद करते हैं कि अप्रैल के मिड से मरीजों की रोबोटिक सर्जरी का काम शुरू हो जाएगा।
डॉ. बगरहट्टा ने बताया- वर्तमान में जो लेपोस्क्रेपी सर्जरी की रेट्स चिरंजीवी योजना के तहत हैं। वही रेट्स हम रोबोटिक सर्जरी के लिए रखेंगे। इसके जरिए बीमारियों को चिरंजीवी से कवर कर फ्री इलाज मिल सके।
डॉ. जीवन कांकरिया ने बताया कि कैंसर ट्यूमर, कोलोरेक्टल सर्जरी, बेरिएट्रिक सर्जरी, हर्निया, एक्लेजिया कार्डिया समेत अन्य सर्जरी में इसका उपयोग अच्छा होगा। ये सर्जरी रोबोटिक सर्जरी आने के बाद काफी आसान हो जाएगी। इन सर्जरी को न केवल आसानी से बल्कि कम समय में भी किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अगर डॉक्टर इस सर्जरी को करने में एक्सपर्ट हो जाते हैं तो इसके रिजल्ट लेपोस्क्रेपी सर्जरी और सामान्य हाथ से की जाने वाली सर्जरी से भी ज्यादा अच्छे होते हैं।
इस मशीन को सामान्य ऑपरेशन थिएटर में रखा जाएगा। इसे धूल मिट्टी से बचाया जाएगा। इसको इंस्टॉल करने के बाद 2 साल तक का रखरखाव कंपनी करेगी। 2 साल बाद एसएमएस मेडिकल कॉलेज हर साल मशीन के रखरखाव और उसके इक्यूपमेंट के लिए कंपनी को 1.78 करोड़ रुपए देगा। जो अगले कुछ सालों में बढ़कर 2.25 करोड़ रुपए तक देने होंगे।
विशेषज्ञों के मुताबिक सर्जरी करने वाले रोबोट (मशीन) एक कम्प्यूटर से कनेक्ट होती है, जिसे एक सर्जन चलाता है। इस सिस्टम के जरिए टारगेट अंग पर सर्जरी के लिए रोबोट को कमांड दी जाती है। इस रोबोट में लगे हाई क्वालिटी कैमरों से विजिबिलिटी और सटीकता काफी बेहतर हो जाती है। रोगी के शरीर में डाले गए इस विशेष कैमरे के जरिए ऑपरेटिव क्षेत्र का एक 3D इमेज भी तैयार किया जाता है। ताकि इसे अच्छे से देकर उस अंग (जिसकी सर्जरी करनी है) के आसपास की नाजुक टिश्यू को कोई डैमेज न हो।
एसएमएस के ही डॉक्टरों की मानें तो इस तरह की रोबोटिक सर्जरी की मशीनें इंडिया में कई कंपनियां बना रही हैं। जो 15 से 18 करोड़ रुपए में उपलब्ध करवा रही हैं। आज भारत के ही कई बड़े हॉस्पिटल्स में इंडियन कंपनी की बनाई रोबोट मशीन से सर्जरी हो रही है। ऐसे में डॉक्टरों का कहना है कि अगर ओपन टेंडर किए जाते तो शायद ज्यादा बेहतर होता। इससे इंडियन कंपनियां भाग लेती और ऐसी ही तकनीक की सस्ती मशीन उपलब्ध हो जाती। इसके अलावा उनका रखरखाव भी सस्ता होता, जबकि विदेशी कंपनी की रोबोटिक मशीन लगने के बाद हर साल 2 करोड़ रुपए तो रखरखाव पर खर्च करने पड़ेंगे।
दरअसल, रोबोटिक सर्जरी मशीन की खरीद के लिए पिछले साल 8 अगस्त को पहला टेंडर जारी किया। 17 अगस्त को प्री-बिड बैठक हुई, लेकिन एक विदेशी कंपनी की मशीन को ध्यान में रखकर तैयार टेंडर की शर्तों के कारण कोई भारतीय कम्पनी शामिल नहीं हो सकी।
इस पर कमेटी के डॉक्टरों ने तो आपत्ति जताई ही साथ में भारतीय कंपनियों ने भी विरोध जताते हुए टेंडर शर्तो में संशोधन करके दोबारा जारी करने की मांग की। इसके बाद मेडिकल कॉलेज ने टेंडर को निरस्त कर दिया। इसके बाद 29 अक्टूबर को वही टेंडर दोबारा किया और बिना किसी संशोधन के सिर्फ एक कंपनी को 3 नवंबर की प्री-बिड बैठक में बुलाया। इसके बाद इसी कंपनी अमेरिकी कंपनी को ही वर्क ऑर्डर दे दिया।
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