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मध्य प्रदेश

मुस्लिम परिवार ने हिंदू बुजुर्ग की अर्थी को दिया कांधा,अपने नहीं आए, बेटी ने मुखाग्नि देकर निभाया बेटे का फर्ज..

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वो हिंदू थी… और उसे संभालने वाले मुस्लिम। अपनों ने उसे बेगाना कर दिया। दर दर भटकने को मजबूर कर दिया। उम्र का ये पड़ाव ऐसा था कि अपने पैरों पर भी खड़ा नहीं हुआ जा सकता था। फिर इंसानियत निभाने कुछ फरिश्ते आए। ना केवल बुजुर्ग को सहारा दिया, बल्कि उसकी मौत के बाद अर्थी को कंधा देकर सम्मान और संस्कार के साथ इस दुनिया से विदाई दी। ये कोई कहानी या किस्सा नहीं, बल्कि हकीकत है। सांप्रदायिक सद्भाव की ये बानगी उन लोगों को करारा तमाचा है, जो समाज को जाति-धर्म के नाम पर बांटकर नफरत फैलाने का काम करते है।

ग्वालियर की 90 साल की बुजुर्ग, नाम – रामदेही माहौर। गुरुवार को उसकी मौत हो गई। अपनों ने पहले ही ठुकरा दिया था। अर्थी को कांधा देने वाला कोई नहीं था। जिसके बाद मुस्लिम परिवार के चार भाई आगे आए। बुजुर्ग की अर्थी को कांधा देकर मुक्तिधाम तक ले गए। वहां दिल्ली से आई बेटी ने बुजुर्ग मां की चिता को मुखाग्नि दी। बेटी के दिल्ली से आने तक मुस्लिम परिवार ने ही हिंदू बुजुर्ग महिला की देखभाल की, सेवा की और जब उसकी मौत हो गई तो पूरे रीति रिवाज और संस्कार के साथ अंतिम संस्कार भी किया।

यह घटना ग्वालियर के न्यू रेलवे कॉलोनी में दरगाह परिसर की है। बुजुर्ग महिला दरगाह परिसर में ही रह रही थी। 90 साल की रामदेही माहौर के परिवार में उनकी एक बेटी शीला माहौर (45) के अलावा कोई नहीं है। वो भी दिल्ली में रहती है। रामदेही पहले अपने भाइयों के साथ रहती थी, लेकिन कुछ साल पहले भाइयों की मौत के बाद वह बेसहारा हो गई। भतीजे उसे खाना नहीं देते थे। बेरहमी से पीटते थे, कुछ महीने पहले उसे घर से निकाल दिया था।

अपनों के ठुकराए जाने के बाद नगर निगम कर्मचारी शाकिर खान का परिवार ही बुजुर्ग महिला का सहारा बना। इस परिवार ने ही उनके दरगाह परिसर में रहने का इंतजाम किया। वहां बने एक रूम में बुजुर्ग के रहने की सारी व्यवस्था की गई। इसके साथ ही उसे खाना दिया जाता था। दिल्ली में बेटी शीला से भी रोज बात कराते थे। गुरुवार को अचानक बुजुर्ग महिला का निधन हो गया। उसके अंतिम संस्कार का संकट आ खड़ा हुआ।

बुजुर्ग महिला की मौत के बाद शाकिर खान ने दिल्ली में उसकी बेटी को सूचना दी। साथ ही यहां उसके रिश्तेदारों, भतीजों को खबर भिजवाई। बेटी मां की मौत खबर मिलते ही ग्वालियर पहुंच गई, लेकिन 100 से 200 मीटर की दूरी पर रहने वाले भतीजे नहीं आए। जब मृतका की बेटी घर आ गई तो संकट खड़ा हो गया कि परिवार के चार सदस्य कंधा देकर पार्थिव देह को मुक्तिधाम तक ले जाते हैं। बेटा या भतीजा मुखाग्नि देता है। ऐसे जब कोई नहीं आया तो शाकिर खान ने यह फर्ज भी निभाया। उन्होंने अपने भाइयों मफदूत खान, मासूम खां, इरफान खान के साथ मिलकर बुजुर्ग की अर्थी को न सिर्फ कंधा दिया बल्कि बैंड बाजों से उनकी शवयात्रा निकाली। जिससे ऐसा न लगे कि मृतका का कोई अपना नहीं है।

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श्मशान घाट में जब पार्थिव देह पहुंच गई तो यह संकट सामने आ गया कि अब चिता को मुखाग्नि कौन देगा, क्योंकि यह फर्ज एक बेटे या भाई, भतीजे का होता है। लेकिन बुजुर्ग के यह तीनों ही नहीं थे। इस पर बुजुर्ग की 45 वर्षीय बेटी ने फैसला लिया कि वह अपनी मां के लिए बेटे का फर्ज पूरा करेगी। उसके इस फैसले की सभी ने सराहना की। इसके बाद शीला ने अपनी मां की चिता को मुखाग्नि देकर सारे संस्कार पूरे किए हैं।

बुजुर्ग महिला की देखभाल और उसकी मौत के बाद अर्थी को कंधा देने वाले शाकिर का कहना है कि हम इंसान हैं और वो भी इंसान थीं। एक इंसान दूसरे इंसान की मदद करे, यही तो हिंदू और मुस्लिम धर्म सिखाता है। कोई कुछ भी कहे, लेकिन हम एक हैं और एक ही रहेंगे।

मां को मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज निभाने वाली शीला का कहना है कि मां के लिए मैं ही बेटी और बेटा थी। इसलिए मैंने उनके अंतिम संस्कार का पूरा फर्ज निभाया है। मोहल्ले के लोगों ने अलग धर्म का होकर भी काफी मदद की है। मुझे लगा मेरा परिवार मिल गया है।

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