उत्तर प्रदेश

85 साल के बुजुर्ग ने घुटनों के बल ली डी.लिट…

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काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के दीक्षांत समारोह में एक भावुक पल आया। कला संकाय की ओर से डी. लिट की डिग्री दी जा रही थी। 85 साल के छात्र डॉ. अमलधारी सिंह का नाम अनाउंस किया गया। इस दौरान खुद के लिखित ग्रंथों और पोथियों को सिर पर लादकर, वह मंच पर आए। इसके बाद घुटनों के बल आकर डीन के हाथों डिग्री ली।

एक 85 साल के बुजुर्ग छात्र का डिग्री लेने का यह स्टाइल देखकर पूरा स्वतंत्रता भवन सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया। उन्हें 10 हजार साल प्राचीन श्लोकों की खोज के लिए BHU में डिग्री दी गई। डॉ. अमलधारी सिंह के साथ ही डी. लिट की यह डिग्री प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सचिन तिवारी को भी दी गई।

डॉ. अमलधारी सिंह को 6 महीने पहले आर्ट फैकल्टी में ही डी. लिट की उपाधि से नवाजा गया था, मगर इस बार उन्हें दीक्षांत समारोह में आधिकारिक तौर पर सम्मानित किया गया। उन्होंने ऋग्वेद की सबसे पुरानी और गुमनाम शाखा शांखायन की खोज की है। या यूं कहें कि उन्होंने 10 हजार साल प्राचीन श्लोकों, सूक्तों और ऋचाओं को खोजा है। इसी विषय पर उन्होंने पूरी डी. लिट की है।

डी. लिट को उच्च शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ डिग्री का दर्जा प्राप्त है। डॉ. अमलधारी सिंह ने बताया कि उन्होंने शांखायन शाखा के बारे में जानने के लिए एक छोटी सी किताब भी लिखी है। वहीं, वैदिक संस्कृत में लिखे हजारों पन्नों के इस पूरे ग्रंथ का अब आम आदमी के बोलचाल की भाषा में डिकोड करने वाले हैं। इससे पहले उन्होंने संस्कृत में अनुवाद कर लिया है।

उन्होंने बताया कि इस शाखा में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, व्यापार और समाज के बारे में बड़ी रहस्मयी जानकारियां दी गईं हैं। एक श्लोक में तो यह भी लिखा गया है कि कैसे एक युवा खुद को बरसों तक जवान बनाए रख सकता है। बहरहाल, इस रेयर ग्रंथ की ऋचाओं पर स्टडी चल रही है। काम पूरा होने के बाद दुनिया को ऋग्वेद की छुपी रहस्यात्मक कहानियां उजागर होंगी।

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छात्र जीवन से निकलने के बाद डॉ. अमलधारी ने आर्मी जॉइन कर ली थी। रिटायरमेंट के बाद स्कूल में टीचिंग का काम शुरू किया। डॉ. अमलधारी सिंह की पहली पुस्तक योग सूत्र 1969 में प्रकाशित हुई। इसके बाद सांख्य दर्शन, कालीदास, अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत का प्रकाशन हुआ। डॉ. अमलधारी सिंह का जन्म जौनपुर के केराकत स्थित कोहारी गांव में 22 जुलाई, 1938 को हुआ था।

वह प्रयागराज से स्नातक किए थे। इसके बाद BHU से 1962 में MA और 1966 में पीएचडी की। वहीं यहीं से NCC के वारंट ऑफिसर और ट्रेनिंग अफसर से लेकर आर्मी का सफर पूरा किए। चीन युद्ध के बाद उन्हें 13 जनवरी 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के हाथों बेस्ट ट्रेनर का अवार्ड मिला था।

एक नजर में डॉ. अमलधारी सिंह का एकेडमिक जीवन

  • इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मिलिट्री साइंस, संस्कृत और अंग्रेजी विषय में स्नातक।
  • BHU से संस्कृत और फिलॉसफी में MA किया।
  • BHU से सांख्य योग और शुद्धाद्वैत वेदांत में आचार्य की उपाधि मिली।
  • 1966 में BHU से ‘कालिदास ए क्रिटिक स्टडी’ विषय PhD पूरी की।
  • जोधपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में अध्यापक बने।
  • अलवर नरेश के अनुरोध पर उनके निजी पुस्तकालय में रखी ऋग्वेद की पांडुलिपियों का अध्ययन किया।
  • 1967 में आर्मी जॉइन किया।
  • जून 1978 में रायबरेली के बैसवारा कॉलेज के प्राचार्य बने।
  • 1983 में BHU के संस्कृत विभाग में बतौर प्रवक्ता उनका चयन हुआ। शिष्य प्रो. उमेश प्रसाद सिंह के लिए नौकरी छोड़ दी।
  • आज 40 साल बाद वह उसी शिष्य के मार्गदर्शन में डी. लिट् पूरी की।

Source: Dainik Bhaskar

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