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राजस्थान

3000 फीट गहरी खान में जान बचाएंगी 7 बेटियां,आग लगी हो या पत्थर गिर रहे हो..

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3000 फीट गहरी खान में जान बचाएंगी 7 बेटियां,आग लगी हो या पत्थर गिर रहे हो.. October 15, 2025

देश को सबसे ज्यादा चांदी देने वाली राजस्थान की 3 हजार फीट गहरी अंडरग्राउंड माइंस में रेस्क्यू का जिम्मा अब 7 बेटियां संभाल रही हैं।

सिंदेसर खुर्द और राजपुरा दरीबा स्थित जिंक, लेड और सिल्वर की माइंस में खुदाई के दौरान कोई हादसा होता है तो सातों जांबाज बेटियां लोगों को बचाने के लिए जान पर खेलने को तैयार हैं। इन्हें हर परिस्थितियों से निपटने के लिए आर्मी की तरह ट्रेंड किया गया है।

देश में पहली बार किसी अंडरग्राउंड माइंस के लिए महिला रेस्क्यू दल बनाया गया है। हाल ही में ये बेटियां नागपुर में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर रेस्क्यू के काम में जुट गई हैं।

सातों जांबाज लड़कियां की आर्मी जैसी ट्रेनिंग

यहां हमें सबसे पहले हिन्दुस्तान जिंक के राजपुरा दरीबा कॉम्प्लेक्स में रेस्क्यू सुपरिटेंडेंट मनुज सिंह से मिले। उन्होंने बताया कि नागपुर में ट्रेनिंग से पहले सभी को हिन्दुस्तान जिंक के रेस्क्यू रूम रिफ्रेशर ट्रेनिंग (RRRT) की देखरेख में राजसमंद की राजपुरा दरीबा कॉम्प्लेक्स में सिलेक्ट किया गया था।

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इनमें से सिंदेसर खुर्द माइंस से 4, राजपुरा दरीबा कॉम्प्लेक्स से एक और जावर ग्रुप ऑफ माइंस से दो लड़कियों को नागपुर स्थित माइन रेस्क्यू स्टेशन में प्राइमरी माइंस रेस्क्यू ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था। वहां 14 दिन की हार्ड ट्रेनिंग हुई। सभी ने 6 मई को देश में माइन रेस्क्यू में पहली 7 महिलाएं होने का गौरव हासिल किया था। रेस्क्यू टीम जॉइन करते ही सातों जाबांज अपने काम में जुट गईं। अब ये मेल रेस्क्यू दल के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं।

सबसे पहले मिलिए अंडरग्राउंड माइंस रेस्क्यू करने वाली बेटियों सें

इस टीम में कुल 7 वीमंस हैं। जिनमें से 5 राजस्थान के अलग-अलग जिलों और 2 तेलंगाना राज्य की हैं। खास बात ये है कि सभी इंजीनियिरिंग बैकग्राउंड से हैं। जबकि रेस्क्यू जैसे काम में हार्ड ट्रेनिंग की जरूरत होती है।

साक्षी गुप्ता ने बताया कि साल 2018 से पहले हमारे देश में महिलाओं को अंडरग्राउंड माइंस में काम करना अलाऊ नहीं था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर हमें अंडरग्राउंड माइंस में काम करने का मौका मिला। इंजीनियरिंग बैकग्राउंड होने से मैं माइंस इंजिनियर बनी। अब जब माइंस रेस्क्यू के लिए भी महिलाओ को मौका मिलने की बात आई तो तय कर लिया था कि मुझे भी यही करना है। इस टीम की मेंबर बनकर गर्व हो रहा है।

संध्या सिंह जोधपुर से हैं, इन्होने माइनिंग इंजीनियरिंग में बीटेक किया हुआ है। उन्होंने बतया कि मेरे पिता सेना में नायब सूबेदार की पोस्ट से रिटायर्ड हैं। मैं भी बचपन से ही डिफेंस में देश सेवा का सपना देखती थी। सेना में तो मौका नहीं मिला पर माइंस इंजिनियर की जॉब लग गई। अब यहां माइंस में रेस्क्यू टीम की मेंबर बनकर लग रहा है कि मेरा सपना पूरा हो रहा है।

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नेहल सोलंकी जोधपुर की रहने वाली हैं। उनका कहना है कि मेरी दिली तमन्ना थी कि में फॉर्सेज में काम करूं। कई बार ट्राय किया पर सिलेक्शन नहीं हुआ। इसके बाद यहां माइंस इंजीनियर बनी। अब रेस्क्यू ट्रेनिंग के बाद लग रहा है हम सेना की तरह ही काम कर रहे हैं। ट्रेनिंग भी वैसी ही हुई। NCC की यादे ताजा हो गई थी।

कविता खीचड़ सीकर जिले के सबलपुरा गांव की रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि शुरू से ही चुनौतियों से प्यार है। पता चला था कि माइंस रेस्क्यू टीम में अभी तक कोई लड़की नहीं है। तभी तय कर लिया था कि मुझे पहली रेस्क्यू टीम का हिस्सा बनना है। जब इसके लिए सलेक्शन स्टार्ट हुए तो मैंने भी पार्टिसिपेट किया। अब नतीजा सबके सामने है। ट्रेनिंग पूरी हो गई है। गांव में सभी प्राउड फील करते हैं।

योजिता तेलंगाना के खम्मम कि रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि इस ट्रेनिंग को लेकर मुझे फायदा हुआ है कि अब जब भी कहीं इमरजेंसी का कॉल आएगा तो मुझे वहां काम करना है। माइंस ही नहीं, जहां भी ऐसी कंडीशन आई तो अपना सब कुछ झोंक दूंगी।

संध्या- तेलंगाना से है। इनके पिता ही इनकी सबसे बड़ी प्रेरणा है, वो भी माइंस फील्ड में ही है। संध्या देश कि पहली माइंस महिला रेस्क्यू टीम की मेंबर बनने से पहले अंडरग्राउंड माइंस में देश की पहली महिला इंजीनियर भी रह चुकी हैं। वो कहती हैं कि ट्रेनिंग के बाद उनमे ये विश्वास जगा है कि हालात चाहे कैसे भी हों मुश्किल में फंसे लोगों को बचा ही लूंगी।

अल्का नागौर जिले के लाडनूं कस्बे की अल्का इस टीम का मेंबर बनने कि खुशी है। कभी सोचा ही नहीं था कि माइंस फील्ड में भी काम करूंगी। न सिर्फ अब ये काम कर रही हूं, बल्कि मैं अब लोगों को बचाने का काम भी कर पा रही हूं।

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देश की सबसे बड़ी और अंडरग्राउंड माइंस सिंदेसर खुर्द

देश में चांदी की सबसे बड़ी और अंडरग्राउंड माइंस है सिंदेसर खुर्द, ऐसे बनती है चांदी

देशभर में चांदी-लेड-जिंक की 5 माइंस हैं, जिनमें से 4 अकेले राजस्थान में हैं। इसमें से सिंदेसर खुर्द माइंस भारत में चांदी की सबसे बड़ी अंडरग्राउंड और वर्ल्ड क्लास माइंस है।

90 मिनिट में लाइफ सेविंग रेस्क्यू पूरा करती हैं ये जांबाज

रेस्क्यू सुपरिटेंडेंट ने हमें अंडरग्राउंड माइंस महिला रेस्क्यू दल की कविता खीचड़, साक्षी गुप्ता, संध्या, नेहाल सोलंकी, संध्या सिंह, योजिता और अल्का से मिलवाया। सभी ने हमें बताया कि वो देश के पहले अंडरग्राउंड माइंस महिला रेस्क्यू टीम की मेंबर बनने पर बेहद गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। साथ ही उन्होंने खुद को काम के चैलेंज के लिए भी पूरी तरह से तैयार बताया।

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टीम की मेंबर साक्षी गुप्ता ने बताती हैं कि अंडरग्राउंड माइंस चाहे कितनी भी गहरी हो या अंदर हालात कितने ही खराब क्यों न हो, हमारी टीम फर्स्ट इन्फॉर्मेशन मिलते ही रेस्क्यू में लग जाती हैं। टीम के सभी मेंबर ट्रेंड हैं और 90 मिनिट में रेस्क्यू को पूरा अंजाम दे देने में सक्षम हैं। दिन के 24 घंटे हम किसी भी इमरजेंसी के लिए प्रिपेयर रहते हैं।

ऐसे रेस्क्यू करती है पूरी टीम

माइंस में कोई घटना या हादसा होता है तो सबसे पहले कंट्रोल रूम में अलर्ट पहुंचता है। ये रूम 24X7 काम करता है। यहां से अगले ही क्षण रेस्क्यू सेंटर को अलर्ट भेज दिया जाता है। इमरजेंसी की सूचना मिलते ही रेस्क्यू टीम जमीन के नीचे 3000 फीट गहरी माइंस तक भी पहुंच जाती हैं। पहले घटना स्थल के नजदीक सेफ जगह पर फ्रेश एयर बेस बना लेती है। यह एक तरह का कंट्रोल रूम काम करता है।

इस बेस में महिला-पुरुष रेस्क्यू दल के साथ ही सभी जरुरी संसाधन जैसे थर्मल इमेजिंग कैमरा, आरएफआईडी टैग, वॉकी-टोकी, गैस मॉनिटरिंग इक्विपमेंट, स्ट्रेचर और फर्स्ट एड का जरुरी सामान पहुंचा दिया जाता है। वहीं एक रेस्क्यू वेन भी अलर्ट मोड़ पर खड़ी रहती है।

इस फ्रेश एयर बेस पर जाकर रेस्क्यू टीम घटना की गंभीरता को समझते हुए लोकेशन की पूरी जानकारी जुटाती है। इसके बाद सभी टीम मेंबर्स को कैप्टन द्वारा रेस्क्यू के दौरान उनके रोल समझा दिए जाते हैं।

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स्पॉट पर अंदर जाते समय ये टीम दीवारों पर रिटर्न एरो का मार्क लगाते हुए जाती है, ताकि वापसी में रास्ता न भटके और जल्दी ही बाहर आ जाएं।

कुछ ही मिनटों में ये टीम पहुंच जाती है माइंस की गहराई में

फ्रेश एयर बेस के आगे टीम को पैदल ही जाना होता है। अंदर चाहे आग लगी हो या कोई पत्थर टूटकर गिरे हों। टीम इन सब घटनाओं से बचने और बचाने में सक्षम होती है। इनके पास मॉर्डर्न इक्यूपमेंट होते हैं। माइंस में किसी के घायल होने, हार्ट अटेक या हीट स्ट्रोक आने पर टीम प्राइमरी ट्रीटमेंट देती है। इस दौरान 6 मेम्बर्स का एक दल घटनास्थल तक जाता है। वहीं दूसरे 6 मेम्बर्स का दल फ्रेश एयर बेस पर बैकअप के लिए मौजूद रहता है। दोनों दल में महिला और पुरुष दोनों होते है।

कंट्रोल रुम में पूरा रेस्क्यू होता है लाइव डिस्प्ले

माइंस के नीचे जो चलने वाला रेस्क्यू ऑपरेशन कंट्रोल रूम में लाइव डिस्प्ले होता है। टीम माइंस में जैसे जैसे आगे बढ़ती है रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करती जाती है। इनके पास आग बुझाने के लिए अग्निशमन यंत्र, भारी पत्थरों को हटाने के लिए हाइड्रोलिक टूल्स होते हैं।

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घटनास्थल पर पहुंचते ही सबसे पहले ये टीम वहां मौजूद खतरे को जांचती है। मान लीजिए वहां पत्थरों के टूटने से कोई मजदूर फंस गया है तो घायलों या फंसे हुए व्यक्ति को बचाने का प्रयास शुरू कर देती है। इसके बाद प्राइमरी ट्रीटमेंट दे स्ट्रेचर के जरिये उसे फ्रेश एयर बेस लाया जाता है। जहां रेस्क्यू किये गए शख्स को वहां पहले से खड़ी इमरजेंसी मेडिकल रेस्क्यू टीम को डिटेल्ड के साथ हेंडओवर कर दिया जाता है।

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