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2008 का 26/11 हमला: रतन टाटा का अडिग नेतृत्व और ताज होटल की पुनर्निर्माण यात्रा

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PTI/Altered by The Quint

साल 2008 मुंबई के लिए एक भयानक आपदा लेकर आया। 26/11 को हुए आतंकवादी हमले में आइकॉनिक ताज होटल को निशाना बनाया गया, जो न केवल पूरे टाटा समूह के लिए, बल्कि रतन टाटा के लिए भी किसी बुरे सपने से कम नहीं था। 70 साल की उम्र में, रतन टाटा अपने कर्मचारियों और देश के लिए एक चट्टान की तरह खड़े रहे। इस भयावह हमले में 166 लोगों की जान चली गई, जिनमें से ताज होटल के 33 कर्मचारी शामिल थे, और 300 से अधिक लोग घायल हुए।

रतन टाटा का नेतृत्व संकट के इस समय में अद्वितीय था। जब तक पुलिस ने यह घोषित नहीं किया कि ताज होटल अब आतंक मुक्त है, उन्होंने एक पल के लिए भी आराम नहीं किया। लगातार तीन दिनों तक वे घटनास्थल पर मौजूद रहे, हर घंटे रेस्क्यू ऑपरेशन की जानकारी लेते रहे। जैसे ही यह सुनिश्चित हुआ कि ताज होटल पूरी तरह सुरक्षित है, उन्होंने तुरंत होटल के अंदर जाने का फैसला किया, ताकि वे स्थिति को खुद देख सकें।

इस हादसे के बाद, रतन टाटा व्यक्तिगत रूप से कामा हॉस्पिटल में घायल लोगों से मिलने पहुंचे। उन्होंने अपने हर एक कर्मचारी से मुलाकात की, उनका हालचाल लिया और उनके पुनर्वास के लिए कदम उठाए। इस त्रासदी से गहरे आहत होकर, उन्होंने अपने लोगों के सुरक्षित भविष्य के लिए ‘ताज पब्लिक सर्विस वेलफेयर ट्रस्ट’ की स्थापना की।

रतन टाटा ने इस कठिन समय में न सिर्फ एक बिज़नेसमैन की भूमिका निभाई, बल्कि एक परिवार के मुखिया का फर्ज़ भी बखूबी निभाया। उन्होंने कभी हार नहीं मानी, बल्कि अपने कर्मचारियों और ताज होटल को दोबारा खड़ा होने की प्रेरणा दी। ताज होटल को एक बार फिर से, पहले से भी ज्यादा खूबसूरत और सुरक्षित तरीके से पुनर्निर्मित किया गया।

उनके नेतृत्व की यह मिसाल आज भी दी जाती है, जब एक सच्चा लीडर न केवल व्यापार के बारे में सोचता है, बल्कि अपने लोगों के भले के लिए हर कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटता। 26/11 का मंजर भले ही एक दुखद घटना के रूप में याद किया जाता है, लेकिन रतन टाटा के साहस और अडिग संकल्प ने यह साबित किया कि सच्चे नेतृत्व की पहचान संकट के समय में होती है।

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