छत्तिश्गढ़
हमें पढ़ना है:अबूझमाड़ के ऐसे बच्चे स्कूल और आश्रमों में, जिनके माता-पिता व रिश्तेदारों को नक्सलियों ने मार डाला..
छत्तीसगढ़ का ऐसा क्षेत्र जो सर्वाधिक नक्सल प्रभावित है। एक सीमा तक ही शासन, प्रशासन और पुलिस बल पहुंच पाया है, बाकि क्षेत्रों में नक्सलियों की दहशत है। मगर, इसी दहशत को पूरी तरह से खत्म करने और नक्सलवादी विचारधारा के विरुद्ध शिक्षा को हथियार बनाया जा रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग और रामकृष्ण मिशन के शिक्षक गांव-गांव से बच्चों को स्कूलों-आश्रमों तक ला रहे हैं, ताकि वे पढ़े-लिखें, सुरक्षित रहें और अच्छे-बुरे का फर्क समझें।
इसी मेहनत का नतीजा है कि हर साल अबूझमाड़ के 4000 हजार बच्चों का आश्रमों और स्कूलों में दाखिला हो रहा, हालांकि यह टारगेट 7 हजार से ऊपर का है। दैनिक भास्कर रामकृष्ण मिशन आश्रम नारायणपुर, वहां से अबुझमांड़ के कुंदला आश्रम और देवगांव के पोटा केबिन पहुंचा। हमारे रिपोर्टर पूरा एक दिन बच्चों के साथ रहे। अलग-अलग बैठकर इनसे बात की। हर किसी ने यही कहा- ‘हमें पढ़ना है।’
इनमें से किसी बच्चे के पिता, चाचा, मां को नक्सलियों ने मार दिया। आज शिक्षक दिवस के मौके पर हम ऐसे ही बच्चों की कहानियां लेकर आए हैं, जो अब जान-समझ चुके हैं कि इनके पढ़ने-लिखने से ही नक्सलवाद का समाधान संभव है।
नारायणपुर से 30 किमी अंदर अबूझमाड़ के कुंदला आश्रम से-
नारायणपुर से अबूझमाड़जाने वाले मुख्य मार्ग पर एक गेट (द्वार) है, जिस पर लिखा है अबूझमाड़ आपका स्वागत है। इसके आगे जाने पर प्रतिबंध है, मुख्य सड़क पर सीआरपीएफ कैंप हैं। हम इस गेट से 14-15 किमी अंदर रामकृष्ण मिशन आश्रम, कुंदला पहुंचे। यहां अबूझमाड़ के अंदर 151 किमी की परिधि में आने वाले धुरनक्सल प्रभावित गांवों के वे 251 छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं जो नक्सल पीड़ित हैं। यहां शिक्षक दिवस की तैयारी कर रही यूनिफॉर्म पहनी छात्रा से हमने उसका नाम पूछा, उसका जवाब था- मॉय नेम इज दीपिका ध्रुव। आई वॉंट टू बिकम ए डॉक्टर।
भास्कर लाइव- पढ़ाई के साथ-साथ रामकृष्ण मिशन आश्रमों में गायन, वादन की शिक्षा दी जा रही, कृषि के बारे में बताया जा रहा, खेल-कूद प्रतिपर्धा हो रहा और प्रोजेक्टर के माध्यम से देश-दुनिया के बारे में बताया जा रहा। इनकी भाषा गौड़ी और अबूझमाड़िया के साथ हिंदी और अंग्रेजी में भी पढ़ा रहे। इन्हें सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक सबके लिए समय निर्धारित है।
5 साल की सुमन गोटा को पता नहीं कि अबूझमाड़ के किस गांव की है। बस इतना पता है कि उसके चाचा और पापा को नक्सलियों ने मार डाला। वह पोटा केबिन देवगांव में है, जहां का प्रबंधन यही जानता हैं कि बच्ची का मामा उसे छोड़ गया। वह कहती है-मुझे मैडम (टीचर) बनना है।
रामकृष्ण मिशन के कुंदला आश्रम (अबूझमाड़के अंदर) का श्रवण ध्रुव वहीं रहकर पढ़ता है। उसने बताया कि चाचा पुलिस में गए तो नक्सलियों ने बड़े पापा रामसाय को मार डाला। पापा को भी मार देते, मगर हम नारायणपुर आ गए। श्रवण टीचर बनना चाहता है, ताकि बच्चों को पढ़ा सके।
नक्सलियों के इस अबूझ गढ़ के बारे में
अबूझमाड़ की आबादी करीब 80 हजार। नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा जिलों में फैला है। यहां गोड़, मुरिया, अबूझमारिया, हलदास जैसी जनजातियां रहती हैं।
शासन के रिकॉर्ड में 246 गांव। इनमें अब तक केवल 58 से अधिक में इसलिए सर्वे हुआ है ताकि शासकीय योजना का लाभ दें, पट्टे बांट सकें।
इधर, उपेक्षा भी… रमकृष्ण मिशन उन गांवों तक पहुंचा जो अभी तक देश के नक्शे में नहीं हैं
मिशन के नारायणपुर स्थित मुख्य आश्रम के सचिव स्वामी व्याप्तानंद कहते हैं कि मिशन ने बीते 35-40 सालों में हजारों बच्चों को गांवों से लेकर आश्रम में आए, उन्हें शिक्षित किया। पहले माता-पिता बच्चों को भेजने में डरते थे। जब हमारे सदस्य गांवों में जाते तो लोग डरकर घरों में छिप जाते थे, मगर अब जागरूक हुए हैं।
स्वयं बच्चों को लाकर देते हैं, ताकि उनका बच्चा सुरक्षित रहे। पढ़े-लिखे। स्वामी व्याप्तानंद के बताया कि अबूझमाड़ के अंदर 6 आश्रम संचालित हैं, इनमें 2600 बच्चे यहीं रहकर पहली से 8वीं और 12वीं तक पढ़ते हैं। कुंदला,ईरकभट्टी, कच्चापाल, कुतूल, आकाबेड़ा और नारायणपुर में आश्रम संचालित हैं। मिशन का लक्ष्य है कि अबूझमाड़ के हर घर का कम से कम एक बच्चा शिक्षित हो। अब तक 2000 बच्चे 12वीं पास हो चुके हैं। 80 बच्चों को स्कॉलरशिप दी जा रही हैं। इनमें से डॉक्टर, आरएमए, इंजीनियर और शिक्षक बने हैं।
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