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राजस्थान में यूआईटी और हाउसिंग बोर्ड के अधिकार छीने,ट्रांसफर-फर्नीचर खरीद की फाइल भी मंत्री के पास आएगी; बोर्ड को हर काम की लेनी होगी परमिशन
राजस्थान में यूआईटी (यूजर एग्रीमेंट्स और इंफ्रास्ट्रक्चर ट्रांसफर) और हाउसिंग बोर्ड के अधिकारों में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। अब इन दोनों संस्थाओं को कई नई प्रक्रियाओं का पालन करना होगा, जिनमें प्रमुख हैं:
अधिकारों में बदलाव:
- अधिकारों का हस्तांतरण: यूआईटी और हाउसिंग बोर्ड के अधिकारों को अब राज्य सरकार ने बदल दिया है। इससे पहले जो अधिकार इन संस्थाओं के पास थे, वे अब मंत्री और उच्चाधिकारियों के पास स्थानांतरित कर दिए गए हैं।
- फाइल ट्रांसफर: अब ट्रांसफर और फर्नीचर खरीद की फाइलें भी मंत्री के पास भेजी जाएंगी। इसका मतलब है कि इन मामलों को अंतिम मंजूरी के लिए अब मंत्री को प्रस्तुत किया जाएगा।
- परमिशन की आवश्यकता: हाउसिंग बोर्ड को अब हर काम के लिए सरकारी मंजूरी लेना होगी। इसका तात्पर्य है कि बोर्ड को अब किसी भी गतिविधि को शुरू करने से पहले संबंधित विभाग से अनुमति प्राप्त करनी होगी।
प्रभाव:
- प्रशासनिक प्रक्रिया में बदलाव: इन बदलावों से प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बदलाव आएंगे। कई कामों के लिए अतिरिक्त मंजूरी की आवश्यकता होगी, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
- पारदर्शिता में वृद्धि: इस कदम से सरकारी कामकाज में पारदर्शिता बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। मंत्री के पास फाइलों का ट्रांसफर और अनुमोदन प्रक्रियाओं को कड़े नियमन के तहत लाया जा रहा है।
- प्रभावित योजनाएं और परियोजनाएं: यूआईटी और हाउसिंग बोर्ड की योजनाओं और परियोजनाओं में अब बदलाव हो सकते हैं। इससे योजनाओं की समयसीमा प्रभावित हो सकती है और नए प्रस्तावों को स्वीकृति मिलने में समय लग सकता है।
- बोर्ड की जिम्मेदारियां: हाउसिंग बोर्ड को अधिक जिम्मेदारी और सरकारी निगरानी का सामना करना पड़ेगा। यह कार्यप्रणाली में अधिक जिम्मेदारी और कड़ी निगरानी का संकेत है।
इस बदलाव से उम्मीद की जा रही है कि सरकारी कामकाज में सुधार होगा और पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन इसके साथ ही प्रक्रिया की जटिलता और देरी भी बढ़ सकती है।
राजस्थान में सभी नगरीय निकायों (यूआईटी, विकास प्राधिकरण, हाउसिंग बोर्ड और रेरा) के अधिकार छीन लिए गए हैं। इन निकायों में ट्रांसफर, टेंडर और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए अब शहरी विकास और आवास (यूडीएच) मंत्री झाबर सिंह खर्रा की स्वीकृति अनिवार्य होगी। इसका मतलब है कि स्थानीय निकायों में कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय मंत्री की मंजूरी के बिना नहीं लिया जा सकेगा।
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