छत्तिश्गढ़
छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले के पीछे की कहानी..
26 अप्रैल को दोपहर के 1.30 बजे थे। छत्तीसगढ़ के अरनपुर में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाकर सुरक्षाबलों का काफिला कैंप लौट रहा था। तभी एक गाड़ी में तेज धमाका हुआ। ये गाड़ी सड़क पर बिछे लैंडमाइन का शिकार हुई। इसमें 10 जवान शहीद हो गए।
क्या इन 5 लापरवाही से गई 10 जवानों की जान?
नक्सलियों के खिलाफ किसी भी ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए गृहमंत्रालय ने सुरक्षाबलों के निश्चित नियम होते हैं। इसे स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर या SOPs कहते हैं। इस प्रोसीजर के कुछ नियम इस तरह से हैं…
- जवानों के काफिले के आगे एक पेट्रोलिंग टीम चलती है। ये टीम विस्फोटक का पता लगाकर जवानों के आने-जाने वाले रास्ते को सैनिटाइज करती है।
- ऐसे खतरनाक रास्ते पर जवान अक्सर पैदल या बाइक का इस्तेमाल करते हैं। एक गाड़ी में सवार होकर इतने जवान तभी मूवमेंट करते हैं, जब सड़क पूरी तरह से सैनिटाइज्ड हो।
- किसी ऑपरेशन के लिए जाने और वापस लौटने के दौरान जवानों का काफिला के रूट को चेंज करना जरूरी है।
- ऑपरेशन से पहले लोकल इंटेलिजेंस टीम से इनपुट लेना जरूरी है। आसपास के इलाके में जांच-पड़ताल की जाती है।
- कमांडर और जिम्मेदार अधिकारी जवानों को लाने और ले जाने वाली गाड़ी को लेकर तैयारी पहले ही कर लेते हैं।
10 जवानों के शहीद होने के बाद मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इस घटना के शिकार होने वाले जवान बुलेटप्रूफ या बैलिस्टिक सुरक्षा तो छोड़िए, वो भाड़े की गाड़ी में सवार थे। SOP की कई बातों को फॉलो नहीं किया गया।
इसके अलावा इस घटना को लेकर बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने राज्य में टॉप नक्सली लीडर मदवी हिडमा को पकड़ने के लिए सर्च अभियान चलाया। हिडमा भले ही नहीं पकड़ा गया हो, लेकिन नक्सलियों ने जरूर हमले तेज कर दिए हैं।
मार्च में नक्सलियों ने अधिकारियों को पत्र लिखकर IED ब्लास्ट की चेतावनी दी थी। इसके बावजूद पुलिस ने ऑपरेशन से पहले SOP फॉलो नहीं करके नक्सलियों की धमकी को नजरअंदाज किया।
धमाके के बाद 15 मिनट तक जवानों ने चलाई अंधाधुंध गोलियां
हमले में शिकार वाहन के पीछे एक स्कॉर्पियो आ रही थी। स्कॉर्पियो में भी सुरक्षाबल के करीब 7 जवान बैठे हुए थे। इन जवानों के आंखों के सामने ये घटना घटी। स्कॉर्पियो के ड्राइवर ने मीडिया को इस घटना की पूरी आंखों-देखी बताई। उसने कहा कि काफिले में सबसे आगे उसकी गाड़ी थी।
अचानक से ड्राइवर ने पान-मसाला खाने के लिए अपनी गाड़ी रोकी। तभी उसकी गाड़ी को ओवर टेक करके एक गाड़ी आगे बढ़ गई। इसमें भी सुरक्षाकर्मी बैठे हुए थे। अभी ये गाड़ी 200 मीटर ही आगे निकली थी कि एक तेज धमाका हुआ। धूल के गुबार से चारों ओर अंधेरा छा गया। पीछे की गाड़ियों में बैठे जवानों ने तुरंत पोजिशन ली और ताबड़तोड़ गोली चलाने लगे।
उन्हें लगा कि नक्सलियों ने आसपास जंगलों में छिपकर इस घटना को अंजाम दिया है, लेकिन वहां कोई भी नहीं था। इसके बाद अधिकारियों ने बाकी जवानों को अरनपुर थाने लौटने का आदेश दिया। पुलिस अधिकारियों ने पीछे से जवानों को लेकर आ रही बाकी गाड़ियों को भी इस घटना की जानकारी दी। चश्मदीद ने कहा कि ये बेहद खौफनाक घटना थी, जिसमें वह बाल-बाल बच गया।
छत्तीसगढ़ में नक्सली गर्मियों में ही क्यों हमले को अंजाम देते हैं?
ऊपर दी गई स्लाइड में दिख रहा है कि ज्यादातर बड़े नक्सली हमले फरवरी से जून यानी पतझड़ और गर्मी के महीने में हुए हैं। एक्सपर्ट्स इसकी 2 वजहें बताते हैं…
- मौसम: हर साल फरवरी से जून के बीच गर्मियों के समय में ही नक्सली अपने हमले को बढ़ाते हैं। यह नक्सलियों की रणनीति का हिस्सा रहा है। दरअसल, नक्सली इस मौसम में सुरक्षा बलों के खिलाफ टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन यानी TCOCs चलाते हैं। 2010 में भी अप्रैल के महीने में ही नक्सलियों के हमले में 75 CRPF जवान शहीद हो गए थे। नक्सली हमले के लिए इस मौसम को इसलिए चुनते हैं क्योंकि जुलाई में मानसून की शुरुआत के साथ ही नक्सलियों और सुरक्षाकर्मियों के लिए ऑपरेशन चलाना मुश्किल हो जाता है। जंगलों में लंबी घास और झाड़ियों के बीच से बह रहे नाले को पार करना नक्सली और सुरक्षाकर्मी दोनों के लिए मुश्किल होता है। यही वजह है कि अगस्त आते-आते नक्सली और सुरक्षाकर्मी दोनों अपने कैंप में लौट आते हैं।
- चुनाव: इस साल के अंत तक छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। आमतौर पर नक्सली चुनावी साल में इस तरह की बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हैं। इससे पहले 2018 में भी छत्तीसगढ़ चुनाव से पहले नक्सलियों ने 18 फरवरी और 14 मार्च को सुकमा में दो बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया था। इनमें करीब 11 जवानों की मौत हुई थी। नक्सलियों के ऐसा करने के पीछे मुख्य वजह ये है कि वह जनता में अपनी मौजूदगी को लेकर संदेश देना चाहते हैं, ताकि जनता चुनाव के समय उनकी बात को माने।
छत्तीसगढ़ में ही ज्यादा नक्सली घटना क्यों होती है?
बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलांगना, उड़ीसा जैसे राज्यों में नक्सलियों को कमजोर करने में या खत्म करने में सेंट्रल पुलिस से भी ज्यादा अहम भूमिका राज्य पुलिस ने निभाई। इन राज्यों की पुलिस ने नक्सलियों से लड़ने के लिए एक स्पेशल टीम बनाई।
इस टीम में उन्हीं राज्य के जवान और अधिकारियों की भर्ती हुई। इनको नक्सली के खिलाफ लड़ने के लिए स्पेशल ट्रेनिंग और मॉडर्न हथियार दिए गए। इसकी वजह ये है कि स्थानीय पुलिस को लोकल क्षेत्र की जानकारी होती है। इन क्षेत्रों में उनका इंटेलिजेंस नेटवर्क होता है।
बाकी राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में ये प्रोसेस लेट शुरू हुई। इसकी वजह से पड़ोसी राज्यों में पुलिस ऑपरेशन चलाए जाने के बाद नक्सली छिपने के लिए छत्तीसगढ़ की ओर भागे। इस तरह छत्तीसगढ़ नक्सलियों को मुख्य अड्डा बन गया।
छत्तीसगढ़ पुलिस ने नक्सलियों के खात्मे के लिए डिस्ट्रिक रिजर्व गार्ड यानी DRG की टीम बनाई। इसमें सरेंडर करने वाले नक्सली और स्थानीय आदिवासी नौजवानों की भर्ती की गई। इन्हें ट्रेन किया गया है। अब ये राज्य में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में अब इस तरह की घटना ज्यादा इसलिए हो रही है क्योंकि बाकी राज्यों की तरह अब यहां नक्सलियों के खिलाफ बड़े स्तर पर ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। नक्सलियों की बेल्ट में सड़क, पानी और बिजली पहुंचाई जा रही है। नक्सली अब कुछ जिलों में सिमट कर रह गए हैं। चारों ओर से घेरकर उनके खिलाफ सर्च अभियान चलाया जा रहा है। यही वजह है कि नक्सली छिपकर सुरक्षाबलों पर हमला करते हैं।
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