छत्तिश्गढ़
छत्तीसगढ़ के बीहड़ में अमीरों ने बसाईं ‘वीरान बस्तियां’..
छत्तीसगढ़ में ओडिशा बॉर्डर पर रायगढ़ से करीब 40 किमी दूर, जंगल के बीच बसे नागरामुड़ा गांव में भारी मुआवजे के लालच में अमीरों ने वीरान बस्तियां बसा डाली। इस बस्ती का गांव वालों से कोई वास्ता नहीं। उनकी जमीन औने-पौने दामों में अमीरों ने खरीद ली है। 4 से 10 गुना ज्यादा मुआवजे के लालच में ये निर्माण किया गया है। गांव में इस हद तक डायवर्सन हुआ है कि आने वाले समय में खेती की जमीनें नहीं बचेंगी।
अकेले नागरामुड़ा ही नहीं, यह तस्वीर गारे-पेल्मा के बीच के तकरीबन दो दर्जन गांवों की है। दरअसल, गारे-पेल्मा दो गांवों के नाम हैं। इस नाम से कोयला खदान भी है। दोनों गांवों के बीच एक बड़े इलाके में कोल ब्लॉक मंजूर होने के बाद ये नाम सुर्खियों में आए।
इन सुर्खियों का लाभ गांवों के मूल निवासियों ने कम, कालाधन खपाने के हथकंडे ढूंढने वालों ने अधिक उठाया। ताज्जुब यह कि आदिवासी जमीन की खरीदी-बिक्री बैन के बाद भी बेरोकटोक चलती रही। यूं कहें कि राजस्व के अफसरों और अमले ने ही जमीन बिकवाने का बीड़ा उठा रखा था। इन लोगों ने खुद भी बड़े पैमाने पर जमीन खरीदकर निर्माण करवा रखे हैं। इस हद तक डायवर्सन हो चुका कि आने वाले दिनों में गांवों में खेती की जमीन नहीं बचेगी।
रायगढ़ जिले के घरघोड़ा समेत ब्लॉकों में अलग-अलग कोल ब्लॉक मंजूर हुए हैं। 2014 में आवंटन रद्द होने के बाद इन ब्लॉकों का दोबारा आवंटन हुआ। ये ब्लॉक इस बार महाराष्ट्र की महाजेन्को, छत्तीसगढ़ की सीएसपीजीसीएल, जिंदल पॉवर, एसईसीएल, हिंडाल्को, यूएसपीएल, सारडा एनर्जी और अंबुजा समेत निजी व सरकारी कंपनियों को मिले। इन ब्लॉकों का दायरा 500 से 900 हेक्टेयर तक है। कोल ब्लॉक आवंटन की अधिसूचना के साथ ही संबंधित क्षेत्र की जमीन पर खरीदी-बिक्री पर आधिकारिक रूप से रोक लग गई। लेकिन ताज्जुब की बात है कि सर्वाधिक खरीदी-बिक्री अधिसूचना के बाद ही हुई। हद तो यह है कि जंगल के बीच बसे इन गांवों में जमीन खरीदने वाले बड़े अफसर, जनप्रतिनिधि, कारोबारी और रसूखदार हैं। कुछ ऐसे कारोबारी भी हैं, जिनका काम रायगढ़ ही नहीं, बिलासपुर, रायपुर, कोरबा, दुर्ग-भिलाई तक फैला हुआ है। एक रुपए खर्च कर चार रुपए कमाने की होड़ ने इन गांवों के मूल निवासियों के हितों को रौंद डाला। किसी ने बेटे-बेटी तो किसी ने पत्नी के नाम पर जमीन ले ली।
ओडिशा बॉर्डर से सटे इस इलाके में 9 कोल ब्लॉकों के दायरे में कुल 70 गांव आ रहे हैं। सबसे अधिक 24 गांव गारे-पेल्मा सेक्टर-1 और 14 गांव सेक्टर-2 की जद में आ रहे हैं। सिस्टम और बिचौलियों की शह पर इन गांवों में हो रहे अवैध निर्माण की स्थिति यह है कि आप जंगल के बीच बसे इन गावों में चले जाइए… ईंट, रेत, गिट्टी, सरिया और सीमेंट ढोती गाड़ियों की आवाजाही आपको चौंका देगी। पता चलता है कि ये सारी सामग्री इन निर्माणों में खपाने के लिए ले जाई जा रही है।
सेक्टर 4/1 में नागरामुड़ा में जमीन की गैरकानूनी ढंग से सर्वाधिक खरीदी-बिक्री हुई। यहां की पंचायत ने प्रशासन से इसकी लिखित शिकायतें की हैं। इसके अलावा सेक्टर 2 में कुंजेमुरा, पाता बांधापाली, डोलेसरा, रोडोपाली, सेक्टर 3 में ढोलनारा, बजरमुड़ा, सेक्टर 4/6 में खम्हरिया, 4/7 में करवाही, चितवाही समेत गांवों में मुआवजे के लिए अवैध निर्माण चरम पर हैं।
महज मुआवजे के लिए बनाए जा रहे बड़े मकानों के निर्माण में गुणवत्ता शून्य है। एक-दो गांवों में गुणवत्ताहीन निर्माण के कारण हादसे भी हो चुके हैं। गुणवत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन निर्माणों का ठेका 300 से 350 रुपए वर्गफीट की दर से दिया जाता है। ईंटों की खपत ऐसी कि क्षेत्र में पिछले कुछ महीनों में ही फ्लाईऐश ब्रिक्स की फैक्ट्रियां लग गई हैं। वर्ष 2021 तक जिन जगहों पर कुछ भी नहीं था, वहां अब बड़े आकार के मकान, कॉम्प्लेक्स और कथित पोल्ट्री फॉर्म बन गए हैं।
इस इलाके के दर्जनभर गांवों में ही तकरीबन 3 हजार पोल्ट्री फॉर्म बन गए हैं। ये सिर्फ नाम के पोल्ट्री फॉर्म हैं। जंगल व खेतों के बीच महज 4-6 फीट के खंभे गाड़कर ऊपर शेड डाल दिए गए। ऐसे फॉर्म बनाने की होड़ इस तरह मची है कि खेतों में लगाए गए शेड रातों-रात चोरी होने लगे। अब इनकी सुरक्षा के लिए चौकीदार रखे गए हैं। सारी कवायद इसलिए कि बस किसी तरह मुआवजे के लिए इनकी गिनती हो जाए। बताया जाता है, एक अफसर ने तो न सिर्फ जमीन बिकवाई, बल्कि शेड तक किराए पर दिलवाए हैं।
वन्यग्रामों में आमतौर जमीन की कीमत कुछ लाख रुपए में होती होगी। जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्रीय मूल्यांकन बोर्ड ने जो दरें तय की हैं, वे कई गुना अधिक हैं। इनमें भी आवासीय, व्यावसायिक, कार्यालय या गोदाम आदि के रेट अलग-अलग हैं। कोल ब्लॉक जिन गांवों में मिले हैं, उनके मूल निवासियों को बेहतर मुआवजे का लाभ मिलना था। लेकिन हो रहा है ठीक उल्टा, क्योंकि शहरी अमीरों ने उनकी जमीन औने-पौने दाम पर खरीद ली है। मुआवजे के खेल को ऐसे समझें-
1. कच्ची मिट्टी की दीवार वाले कबेलू का मुआवजा 118 रु. वर्गफीट है, लेकिन यही कॉलम सिस्टम, पक्का आरसीसी छत वाला मकान हो तो यह दर 1109 रु. वर्गफीट है।
2. पक्की दीवारों वाली दुकानों पर 1517 रु. वर्गफीट और 16316 रु. वर्गमीटर की दर से मुआवजे का प्रावधान है। इसीलिए गांवों के भीतर-बाहर 20-30 दुकानों वाले कॉम्प्लेक्स तन गए हैं।
3. टीन-शेड या शीट वाली जमीन पर 584 रु. वर्गफीट की दर से मुआवजा है। यही वजह है कि खेतों में घास की ऊंचाई वाले शेड डालकर इन्हें पोल्ट्री फॉर्म का नाम दे दिया गया।
जिन इलाकों में कोल ब्लॉक हैं, वहां जमीन की खरीदी-बिक्री प्रतिबंधित की गई है। मुआवजा लेने के लिए अवैध निर्माण की जानकारी तो है, पर जब तक जमीन अधिग्रहण शुरू नहीं हो जाता, हम कुछ कर नहीं सकते। – रोहित कुमार सिंह, एसडीएम घरघोड़ा
मैं इस इलाके में सिर्फ चार महीने, जून तक ही पदस्थ रही। जमीन की खरीदी-बिक्री पर आधिकारिक रूप से रोक नहीं लगी थी। रोक तो अब लगी है। जितनी भी खरीदी-बिक्री हुई, अनुविभागीय अधिकारी की अनुमति से ही हुई है।- माया अंचल, तत्कालीन तहसीलदार
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