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आधा मानसून बीत गया, बारिश को तरसे 9 प्रदेश,10 में जरूरत से ज्यादा पानी..
भारत में मानसून आमतौर पर 1 जून से 30 सितंबर तक होता है। 31 जुलाई तक इसने अपना आधा रास्ता तय कर लिया है। मानसून की एंट्री भले ही 7 दिन देरी से हुई थी, लेकिन अब तक मानसूनी बारिश सामान्य से 6% ज्यादा हुई है। हालांकि, राज्यों में बारिश का पैटर्न परेशान करने वाला है। देश के 10 राज्यों में जरूरत से ज्यादा बारिश हुई, तो 9 राज्य अभी बारिश को तरस रहे हैं।
देश के कई राज्यों में कम बारिश होने की वजह क्या है?
मौसम विज्ञान केंद्र भोपाल के वैज्ञानिक वेद प्रकाश सिंह कहते हैं कि अलनीनो के सक्रिय होने की वजह से अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाएं उतनी सक्रिय नहीं हैं जितनी बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवा है।
जून के अंत और जुलाई की शुरुआत में पश्चिमी भारत के राज्य गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक में उतनी अच्छी बारिश नहीं हुई। हालांकि, जुलाई के दूसरे सप्ताह में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली हवाएं एक साथ सक्रिय हुईं।
इससे गुजरात, राजस्थान का दक्षिणी हिस्सा और उत्तरी भारत के कई राज्यों में अच्छी बारिश हुई। जुलाई में जिस तरह से बारिश होनी चाहिए, वैसी बारिश नहीं हुई है। इसके बावजूद कहीं काफी ज्यादा और कहीं कम बारिश होने के औसत को देखें तो पूरे देश में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है।
बंगाल की खाड़ी से मानसूनी हवा चलती है, लेकिन बंगाल, बिहार में ही ज्यादा सूखे की वजह क्या है?
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाओं ने इस बार अपने मूवमेंट की दिशा बदल ली। इस वजह से छत्तीसगढ़, ओडिशा, असम में काफी बारिश हुई, लेकिन बिहार, झारखंड, बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश में सूखे की स्थिति बन गई। यहां तक कि पूर्वी मध्य प्रदेश में भी इस मानसूनी सीजन में सामान्य से 8% कम बारिश हुई है।
बारिश के मौसम में बिहार, झारखंड, UP जैसे राज्यों में उमस भरी गर्मी की क्या वजह है?
जितना ज्यादा पसीना वाष्पित होता है, उतना ही ज्यादा शरीर ठंडा महसूस करता है। इसे ऐसे समझिए कि गर्मी में घड़े का पानी ठंडा रहता है। दरअसल, रिस कर घड़े की सतह पर आने वाली पानी की बूंदें हवा या गर्मी से वाष्पित हो जाती हैं। वाष्पीकरण प्रोसेस के दौरान पानी की बूंदें घड़े के अंदर की गर्मी को एब्जॉर्ब कर लेती हैं। इससे घड़े का पानी ठंडा हो जाता है।
मौसम वैज्ञानिक वेद प्रकाश के मुताबिक बंगाल की खाड़ी का पानी इस बार औसत से ज्यादा गर्म है। इस कारण वहां वाष्पीकरण की दर ज्यादा है। यही वजह है कि वायुमंडल में नमी इस बार जितनी होनी चाहिए, उससे 20% ज्यादा हो गई है। ऐसे में इन राज्यों के लोगों के शरीर से निकलने वाला पसीना सही से वाष्पित नहीं हो पा रहा है। इससे न सिर्फ शरीर चिपचिपा हो जाता है, बल्कि उमस और गर्मी भी महसूस होती है।
देश में अगले कुछ दिनों में बारिश होने की क्या संभावनाएं हैं?
अगले सप्ताह तक बंगाल की खाड़ी की ओर से बारिश कराने वाली मानसूनी हवाओं के आने की संभावना नहीं है। जो थोड़ी बहुत हवाएं होंगीं, उनका असर ओडिशा, असम और बंगाल तक ही सीमित रहेगा। बाकी राज्यों में बारिश होने की संभावना न के बराबर है।
देश के 9 राज्यों में कम बारिश होने से आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा?
देश में खरीफ फसल की बुआई जून से अगस्त के बीच होती है। जून-जुलाई में होने वाले बारिश से ही ये तय होता है कि देश में कितनी पैदावार होगी। वहीं, अगस्त और सितंबर में होने वाली बारिश से ही देश के ज्यादातर तालाब, जलाशय और ग्राउंड वाटर रिचार्ज होते हैं। ऐसे में सामान्य से कम बारिश होने से आम लोगों पर कुछ इस तरह से असर पड़ेगा…
1. फसलों की बुआई कम जमीन पर होने की वजह से पैदावार में कमी
1 जुलाई 2023 तक सरकारी गोदामों में 71.1 मिलियन टन चावल और गेहूं का भंडार था, ये बीते 5 साल में सबसे कम है। हालांकि, सामान्य सालों में जब अच्छी फसल होने की उम्मीद हो और चुनाव सामने नहीं हो तो इतना अनाज का भंडार पर्याप्त होता है, लेकिन इस बार कम बारिश से पैदावार भी कम होने की संभावना है और चुनाव भी सामने है। ऐसे में कम बारिश होने का सीधा असर अनाज भंडार पर पड़ना तय है।
2. कमजोर अर्थव्यवस्था का अनुमान
चुनावी सालों में अगर कम बारिश होती है तो तमाम एजेंसियां देश की इकोनॉमी को लेकर अनुमान लगाने लगती हैं। इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ता है। उम्मीद से कम बारिश की वजह से 2015-16 में महंगाई दर 6.2% और 2014-15 में 4.3% बढ़ गई थी। ऐसे में साफ है कि इस बार भी कम बारिश हुई तो खाने-पीने की चीजों की कीमत बढ़ेगी।
3. शेयर बाजार पर निगेटिव असर
बारिश कम होने से जब महंगाई बढ़ती है तो इस पर काबू पाने के लिए केंद्रीय रिजर्व बैंक ब्याज दर में बदलाव करता है। इसका सीधा असर शेयर बाजार पर पड़ता है। निवेशक उस बाजार में पैसा लगाना चाहते हैं, जहां स्थिरता हो। ऐसे में सूखा पड़ने पर बाजार की अस्थिरता को देखते हुए निवेशक दूसरी जगह पैसा लगाना पसंद करेंगे।
जिन 8 राज्यों में सबसे ज्यादा सूखे की संभावना है, वहां कम फसलों की बुआई होगी। हालांकि, मानसून के शुरुआती तीन सप्ताह में उम्मीद के मुताबिक फसलों की बुआई हुई है। उसके बाद बारिश कम होने से बुआई में कमी जरूर आई है।
एक अच्छी बात ये है कि प्रमुख कृषि राज्य हरियाणा, पंजाब में भी इस बार सतलुज, घाघरा और यमुना नदी के किनारे इस बार काफी धान की बुआई होने की खबर आ रही है। हिमाचल के कुछ इलाकों में भी धान की अच्छी बुआई हुई है। ऐसे में सूखे वाले राज्यों को छोड़कर अगर बाकी राज्यों में अगस्त के आखिरी सप्ताह में अच्छी बुआई हुई तो पैदावार की भरपाई हो सकती है।
मानसून आते ही दो शब्द अक्सर चर्चा में आ जाते हैं- ला-नीनो और अल-नीनो। स्पेनिश भाषा के ये शब्द इस बार भी सुनाई दे रहे हैं। 8 जून को केरल में मानसून की पहली बारिश हुई और उसी दिन अमेरिकी एजेंसी NOAA यानी नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने बताया कि प्रशांत महासागर में अल-नीनो आ गया। भारत में इसे बुरी खबर मानकर चर्चा शुरू हो गई।
दुनिया भर का तापमान पिछले 150 सालों में 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा। लेकिन इस सदी के अंत तक इसके 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है। ऊपर से धरती के दक्षिण ध्रुव के ऊपर ओजोन परत में हर साल बढ़ रहा छेद अंटार्कटिका से भी बड़े आकार का हो गया है। इसका भी ग्लोबल टेंपरेचर पर असर पड़ना तय है।
इतना ही नहीं तेल रिसाव और प्लास्टिक कचरे की वजह से बढ़ रहा समुद्री प्रदूषण भी किसी से छिपा नहीं है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट कहती है कि प्रदूषण बढ़ने और क्लाइमेट चेंज के कारण भारत में हर साल भीषण गर्मी से 83700 लोगों की जान जाती है। साथ ही अधिक ठंड के कारण मरने वालों का आंकड़ा 6.55 लाख है।
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