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अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने का फैसला
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर निकालने का फैसला किया है। यह निर्णय न केवल पर्यावरण संरक्षण के वैश्विक प्रयासों पर बड़ा झटका है, बल्कि अमेरिका के आर्थिक हितों और पर्यावरणीय नीतियों के बीच संतुलन पर भी सवाल उठाता है। ट्रंप प्रशासन ने इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था और औद्योगिक उत्पादन के लिए एक “अनुचित बोझ” करार दिया है।
पेरिस जलवायु समझौता: एक परिचय
पेरिस जलवायु समझौता 2015 में फ्रांस के पेरिस में हुआ था। इसमें 196 देशों ने हिस्सा लिया था। इसका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना और वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है। इस समझौते के तहत विकसित देशों को विकासशील देशों को आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान करनी थी।
अमेरिका का योगदान:
- अमेरिका विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जक देश है।
- समझौते के तहत अमेरिका ने 2025 तक अपने उत्सर्जन में 26-28% की कमी का लक्ष्य रखा था।
ट्रंप का तर्क: क्यों छोड़ा समझौता?
राष्ट्रपति ट्रंप ने पेरिस समझौते को अमेरिकी उद्योगों के लिए आर्थिक रूप से नुकसानदायक बताया। उनके अनुसार:
- अमेरिकी नौकरियों पर प्रभाव: ट्रंप का मानना है कि समझौता अमेरिकी कोयला, तेल, और गैस उद्योगों पर बुरा असर डालता है।
- अन्य देशों को फायदा: ट्रंप के अनुसार, चीन और भारत जैसे विकासशील देशों को इस समझौते में अधिक छूट दी गई है।
- राष्ट्रवाद की प्राथमिकता: ट्रंप का कहना है कि “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत, वे कोई भी ऐसा समझौता स्वीकार नहीं करेंगे जो अमेरिका के आर्थिक हितों को कमजोर करता हो।
वैश्विक प्रतिक्रिया:
ट्रंप के इस फैसले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना हुई है।
- यूरोपीय संघ की प्रतिक्रिया: यूरोपीय संघ ने इसे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में बड़ा झटका बताया।
- संयुक्त राष्ट्र: यूएन के महासचिव ने कहा कि यह निर्णय वैश्विक पर्यावरणीय नीतियों को कमजोर कर सकता है।
- भारत और चीन: दोनों देशों ने अपने जलवायु लक्ष्यों को जारी रखने का वादा किया है।
इस फैसले के संभावित प्रभाव
1. पर्यावरण पर प्रभाव:
अमेरिका का समझौते से बाहर निकलना ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के प्रयासों पर गंभीर असर डाल सकता है। अमेरिका जैसे बड़े प्रदूषक देश के सहयोग के बिना तापमान वृद्धि को सीमित करना मुश्किल हो जाएगा।
2. आर्थिक प्रभाव:
- अमेरिका: कोयला और गैस जैसे उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन ग्रीन एनर्जी सेक्टर को नुकसान होगा।
- वैश्विक स्तर पर: कई देशों को अमेरिका की तकनीकी और आर्थिक सहायता की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
3. भारत पर प्रभाव:
भारत जैसे विकासशील देशों पर नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश का दबाव बढ़ सकता है। अमेरिका की सहायता और फंडिंग में कटौती से भारत के सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट्स प्रभावित हो सकते हैं।
भारत के लिए सबक:
- स्वावलंबन: भारत को अपने संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को आत्मनिर्भर बनाना होगा।
- नीतियों का सुदृढ़ीकरण: भारत को अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों को तय समय पर पूरा करने के लिए नई नीतियां लागू करनी होंगी।
निष्कर्ष
अमेरिका का पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलना एक वैश्विक चिंता का विषय है। इस फैसले से पर्यावरण संरक्षण के प्रयास धीमे हो सकते हैं। हालांकि, बाकी देशों ने अपने लक्ष्यों को जारी रखने का संकल्प लिया है, जो एक सकारात्मक संकेत है। भारत जैसे देशों को इस स्थिति का फायदा उठाते हुए खुद को पर्यावरणीय नेतृत्व के लिए तैयार करना चाहिए।
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