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अंबेडकर ने ब्राह्मण लड़की से की थी दूसरी शादी..

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‘देखो डॉक्टर! मेरे साथी और मेरे अपने लोग मुझ पर ये जोर डाल रहे हैं कि मैं शादी कर लूं। लेकिन मेरे लिए एक काबिल साथी ढूंढना बहुत मुश्किल हो रहा है। मेरे लाखों लोगों के लिए मुझे जिंदा रहना होगा और इसके लिए यही सही होगा कि मैं अपने लोगों की विनती को गंभीरता से लूं।’

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इस तरह डॉक्टर शारदा कबीर के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। तब वे नहीं समझ सकीं कि अंबेडकर उनसे शादी के लिए पूछ रहे हैं। वे दोनों डॉ. मालवंकर कि क्लिनिक से एक साथ कार में वापस आ रहे थे।

शारदा कबीर कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं- जी जरूर आपके पास कोई ऐसा होना चाहिए जो आपका ख्याल रख सके। उनका जवाब सुनकर अंबेडकर ने कहा कि मैं आपके साथ ही अपने लिए सही व्यक्ति की खोज शुरू करता हूं।

इसके बाद अंबेडकर मुंबई से दिल्ली के लिए निकल गए। कुछ दिन बाद शारदा कबीर के पास अंबेडकर की एक चिट्ठी आई। लिखा था – ‘मेरी और तुम्हारी आयु के अंतर और मेरे खराब स्वास्थ्य के कारण अगर तुम मेरे प्रोपजल को अस्वीकार भी करती हो तो मैं अपमानित महसूस नहीं करूंगा। इस पर सोचना और मुझे बताना।’ एक पूरे दिन और पूरी रात सोचने के बाद शारदा कबीर ने ‘हां’ में जवाब दिया।

इस तरह 15 अप्रैल 1948 को अंबेडकर ने शारदा के साथ दूसरी शादी कर ली। शादी के बाद शारदा कबीर को लोग सविता अंबेडकर के नाम से जानने लगे। इस वाकये का जिक्र सविता अंबेडकर ने अपनी आत्मकथा ‘डॉ. अंबेडकरच्या सहवासत’ में किया है। इसका अंग्रेजी अनुवाद डॉ. नदीम खान ने ‘बाबा साहेब – माय लाइफ विद डॉ. अंबेडकर’ नाम से किया है।

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डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू जिले में एक महार परिवार में हुआ था। महार जाति को उस समय अछूत समझा जाता था। बाबा साहब के पिता सेना में थे और नौकरी के सिलसिले में यहां रहा करते थे। उनके पुरखे महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबाडावे गांव से थे।

1906 में भीमराव अंबेडकर की पहली शादी रमाबाई से हुई। रमाबाई ने उनकी पढ़ाई में बहुत मदद की। दोनों के 5 बच्चे थे, इनमें से केवल यशवंत अंबेडकर जीवित रहे। 27 मई 1935 को लंबी बीमारी के बाद रमाबाई की मौत हो गई।

प्रोग्रेसिव सोच वाले ब्राह्मण परिवार में जन्मीं थीं दूसरी पत्नी सविता

27 जनवरी 1909 को जन्मीं शारदा (भीमराव से शादी के बाद सविता अंबेडकर बनीं) एक मध्यमवर्गीय सारस्वत ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उनके पिता इंडियन मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार थे। शारदा ने 1937 में मुंबई से MBBS की डिग्री हासिल की। उस समय किसी लड़की का डॉक्टर बनना अचरज की बात थी।

डॉ. सविता अपनी आत्मकथा में लिखती हैं कि मेरा परिवार पढ़ा-लिखा और आधुनिक था। उनके 8 में से 6 भाई-बहनों ने अपनी जाति के बाहर शादी की, लेकिन उनके माता-पिता ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई।

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MBBS के बाद उन्होंने फर्स्ट क्लास मेडिकल ऑफिसर के तौर पर गुजरात के अस्पताल में काम किया। यहां तबीयत बिगड़ने के चलते वे वापस मुंबई आ गईं। वे आगे MD भी करना चाहती थीं, लेकिन खराब तबीयत के चलते नहीं कर पाईं। इसके बाद वे डॉ. माधवराव मालवंकर के यहां बतौर जूनियर डॉक्टर काम करने लगीं।

खराब तबीयत के चलते हुई बाबा साहब और डॉ. सविता की मुलाकात

1947 के शुरुआती दिनों में शारदा और भीमराव की पहली मुलाकात हुई थी। डॉ. सविता लिखती हैं कि जब बाबा साहब उनसे मिले तो वे कई बीमारियों से जूझ रहे थे। उनका उठना-बैठना तक मुश्किल था। डॉ. मालवंकर के यहां इलाज के दौरान दोनों मिलते रहे। इस दौरान उनके बीच चिट्ठियों में बातचीत होती थी।

इसी दौरान भीमराव ने शारदा से शादी का प्रस्ताव रखा। 15 अप्रैल 1948 को दोनों ने शादी कर ली। इसके बाद शारदा बन गईं डॉ. सविता अंबेडकर।

1953 में सविता अंबेडकर गर्भवती हुईं। बाबा साहब उन्हें कहते थे कि उनको बेटी ही होगी। इसी दौरान कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के विशेष न्यौते पर वे दोनों कश्मीर गए। यहां एक दोपहर सविता को चक्कर आने लगे, उन्हें बार-बार उल्टियां हो रही थीं।

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बाबा साहब तुरंत उन्हें दिल्ली वापस ले आए, यहां अस्पताल में इलाज के समय पता चला कि डॉ. सविता का गर्भपात हो गया है। इस घटना ने बाबा साहब को अंदर तक झकझोर दिया। वे बेहद परेशान रहने लगे। डॉ. सविता ने बाबा साहब से अपनी बहन की बेटी को गोद लेने के लिए कहा। वे मान भी गए, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

‘सविता की वजह से मैंने 8-10 साल अधिक जीवन जिया’

डॉ. सविता अंबेडकर का बाबा साहब के जीवन पर गहरा असर था। उन्होंने हमेशा बाबा साहब के राजनीतिक-सामाजिक आंदोलनों में उनका साथ दिया। वे उनकी सेहत का बहुत ध्यान रखा करती थीं। बाबा साहब ने अपनी किताब ‘बुद्ध और उसके धम्म’ में इसका जिक्र किया है। उन्होंने लिखा, ‘सविता आंबेडकर की वजह से मैंने 8-10 साल अधिक जीवन जिया है।’

14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहब अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपना लिया। उनकी पत्नी सविता अंबेडकर और 5,00,000 अनुयायियों ने भी उनके साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। इस बारे में डॉ. सविता अपनी आत्मकथा में बताती हैं कि ‘मैं विनम्रता से ये दर्ज करना चाहती हूं कि यदि मैंने उन्हें नागपुर की धर्म परिवर्तन सभा के लिए प्रोत्साहित न किया होता तो वह ऐतिहासिक घटना कभी नहीं होती।’

मृत्यु के समय बाबा साहब के पास थीं 35,000 किताबें

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अंबेडकर अपने जमाने में भारत के सबसे पढ़े लिखे व्यक्ति थे। उन्होंने मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से BA किया था। इसके बाद उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स से PhD की डिग्री ली। उस समय अंबेडकर के पास भारत में किताबों का सबसे बेहतरीन संग्रह था। मशहूर किताब इनसाइड एशिया के लेखक जॉन गुंथेर ने लिखा है कि, ‘1938 में मेरी राजगृह में अंबेडकर से मुलाकात हुई तो उनके पास 8,000 किताबें थीं, उनकी मृत्यु होने तक ये संख्या 35,000 हो चुकी थी।’

बाबा साहब अपनी किताबें किसी को भी पढ़ने के लिए उधार नहीं देते थे। वे कहते थे कि जिसे भी किताब पढ़नी है, वो उनके पुस्तकालय में आकर पढ़े। वे पूरी रात किताब पढ़ते रहते और सुबह सोने जाते थे। केवल 2 घंटे सोने के बाद वे सुबह में कसरत करते। इसके बाद नहाकर नाश्ता करते और फिर अपनी कार में कोर्ट जाते थे। इस दौरान वे उन किताबों को पलट रहे होते थे, जो उस दिन उनके पास डाक से आई होती थीं।

कोर्ट खत्म होने के बाद वे किताबों की दुकान का चक्कर लगाते। जब शाम को घर लौटते तो उनके हाथ में किताबों का एक नया बंडल होता। वे घर लौटकर सीधे अपनी पढ़ने वाली मेज पर जाते थे। उनके पास कपड़े बदलने तक का समय भी नहीं रहता था।

डेली मेल ने की थी बाबा साहब के बगीचे की तारीफ

उनकी बागबानी के किस्से विदेशों तक मशहूर थे। एक बार ब्रिटिश अखबार डेली मेल ने उनके गॉर्डन की तारीफ की थी। उनसे अच्छा और सुंदर बगीचा दिल्ली में किसी के घर नहीं था। वे अपने कुत्तों को भी बहुत पसंद करते थे।

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कभी-कभी छुट्टियों में बाबा साहब खुद खाना बनाते थे। उन्हें मूली और सरसों का साग पकाने का बहुत शौक था। वे किसी तरह का नशा या धूम्रपान नहीं करते थे। वे बहुत साधारण खाना खाते थे। उन्हें बाहर जाकर खाना बिल्कुल नहीं पसंद था। उनका मानना था कि बाहर जाने-आने में बहुत समय बर्बाद हो जाता है। अपने जीवन के आखिरी दिनों में उन्होंने वॉयलिन बजाना सीखना शुरू किया था।

खुद को मुसलमान बताने पर भी नहीं मिला पानी

करीब 9 साल की उम्र में बाबा साहब अपने भाई और बहन के बेटों के साथ पिता के पास सतारा गए। पिता ने उन्हें चिट्ठी लिखकर बुलाया था, उन्होंने कहा था वे मसूर रेलवे स्टेशन पर पर अपने चपरासी को भेज देंगे। जब बाबा साहब स्टेशन पहुंचे तो उन्हें लेने कोई नहीं आया था। स्टेशन मास्टर ने उनसे पूछा कि वे स्टेशन पर क्यों रुके हुए हैं? उन्होंने पूरी बात बताई। वे सभी अच्छे कपड़े पहने थे और ठीक तरह से बात कर पा रहे थे, इससे स्टेशन मास्टर को लगा कि वे ब्राह्मणों के बच्चे हैं।

स्टेशन मास्टर उनकी परेशानी से काफी दुखी हुआ। हालांकि, ये ज्यादा समय नहीं रहा; कुछ ही देर में उसने पूछा कि वे कौन हैं? बाबा साहब ने बिना सोचे-समझे कहा कि हम महार हैं। ये सुनते ही उसके चहरे का रंग उड़ गया। वो तुरंत वापस चला गया।

उनके अछूत होने के कारण कोई गाड़ी वाला उन्हें ले जाने के लिए तैयार नहीं था। वे ज्यादा पैसे देने के लिए तैयार थे, लेकिन कोई अपवित्र होने के लिए नहीं। एक गाड़ीवान दोगुने किराए में इस बात पर राजी हुआ कि गाड़ी बाबा साहब हांकेंगे और वो साथ में पैदल चलेगा। इसके बाद भी उनका सफर आसान नहीं रहा।

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रास्ते में रात हो गई और उन्हें बीच में रुकना पड़ा। बाबा साहब ने टिफिन से खाना खाया, लेकिन उनके पास पानी नहीं था। पास ही नदी थी, लेकिन वो बेहद गंदी थी। थोड़ा आगे बढ़कर वे चुंगी पर रुके, खुद को मुसलमान बताने के बावजूद चुंगी वाले ने उन्हें पानी नहीं दिया।

बाबा साहब अपनी आत्मकथा ‘वेटिंग फॉर वीजा’ में इस घटना का जिक्र करते हैं। वे लिखते हैं कि, “उस घटना से मुझे ऐसा झटका लगा जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसी से मैं छुआछूत के बारे में सोचने लगा।”

भीमराव अंबेडकर को शुरुआत में ब्राह्मण समझते थे महात्मा गांधी

‌BBC को दिए एक इंटरव्यू में अंबेडकर बताते हैं, ‘मैं 1929 में पहली बार गांधी से मिला था। एक कॉमन दोस्त थे, जिन्होंने गांधी को मुझसे मिलने को कहा। गांधी ने मुझे खत लिखा कि वो मुझसे मिलना चाहते हैं, इसलिए मैं उनके पास गया और उनसे मिला। ये गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए जाने से ठीक पहले की बात है।’

लंदन की राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में जाने तक महात्मा गांधी को लगता था कि डॉ. भीमराव अंबेडकर एक ब्राह्मण हैं, जिन्हें अछूतों की चिंता है। इसस पहले अंबेडकर गांधी से मिलने पहुंचे। गांधी जी इस समय अपने शिष्यों से बातचीत कर रहे थे। पहले तो उन्होंने बाबा साहब की तरफ देखा भी नहीं, बाद में उनसे बात करते हुए कहा- मैं अपने स्कूल के समय से अछूतों की समस्या के बारे में सोच रहा हूं, तब आप पैदा भी नहीं हुए थे।

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इस पर अंबेडकर ने कहा कि अछूत होने की वजह से मेरे पास कोई घर नहीं है। कांग्रेस अपने काम के लिए गंभीर नहीं है। अगर वो गंभीर होती तो कांग्रेस का सदस्य बनने के लिए खादी पहनने की अनिवार्यता के साथ छुआछूत नहीं मानने की शर्त भी रखती। किसी भी ऐसे इंसान को कांग्रेस का सदस्य बनने की इजाजत नहीं होती जो अपने घर में कम से कम किसी एक अछूत को काम पर न रखे। किसी अछूत बच्चे को पढ़ाने की जिम्मेदारी न ले। किसी अछूत बच्चे के साथ हफ्ते में कम से कम एक बार खाना नहीं खाए। अगर ऐसा होता तो अछूतों के मंदिर जाने पर कांग्रेस कमिटी के सदस्य जो विरोध जताते हैं, आप उसे अनदेखा नहीं करते।

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