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युद्ध हुआ तो भारतीय सैटेलाइट्स को तबाह कर देगा चीन..

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12 अक्टूबर 2020 की सुबह, मुंबई में अचानक बिजली सप्लाई बंद हो गई। कई इलाके अंधेरे में डूब गए। अस्पतालों में वेंटिलेटर्स को चलाने के लिए इमरजेंसी जनरेटर चलाने पड़े। स्टॉक मार्केट बंद हो गए। कई दशकों में यह सबसे बड़ा पावर आउटेज था।

दरअसल, यह किसी खामी की वजह से नहीं बल्कि चीनी हैकर्स की फौज ने पावर ग्रिड को हैक करके ऐसा किया था।

अब चीन इससे भी दो कदम आगे की सोच रहा है। चीन युद्ध के दौरान भारत जैसे दुश्मन देशों की सैटेलाइट को सीज कर तबाह करने की टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है। अमेरिका के लीक इंटेलिजेंस डॉक्यूमेंट में यह खुलासा हुआ है।

भारत और अमेरिका की जासूसी के लिए सैटेलाइट लॉन्च कर रहा चीन

अमेरिका के लीक इंटेलिजेंस डॉक्यूमेंट के मुताबिक, अमेरिका के रक्षा अधिकारियों ने बताया है कि चीन को मिलिट्री स्पेस टेक्नोलॉजी डेवलप करने में काफी सफलता मिल चुकी है। इसमें सैटेलाइट कम्युनिकेशन भी शामिल है।

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अमेरिका के स्पेस फोर्स चीफ बी चांस साल्ट्जमैन ने कांग्रेस यानी अमेरिकी संसद को बताया है कि चीन आक्रामक रूप से स्पेस क्षमताओं को बढ़ाने में जुटा है।

चीन एंटी-सैटेलाइट मिसाइल, इलेक्ट्रॉनिक जैमर, लेजर और टेक्नोलॉजी को विकसित कर रहा है जो किसी दुश्मन देश की सैटेलाइट्स को मार सकता है। उन्होंने बताया कि चीन का सपना 2045 तक स्पेस में सबसे बड़ी शक्ति बनने का है।

चीन की मिलिट्री अब तक 347 सैटेलाइट को लॉन्च कर चुकी है। इनमें 35 सैटेलाइट पिछले छह महीने में लॉन्च की गई हैं। चीन की सेना का लक्ष्य इन सभी सैटेलाइट के जरिए अमेरिका और भारत समेत अपने सभी दुश्मन देशों की सेनाओं की निगरानी करना है।

चीन ने एंटी सैटेलाइट रोबोटिक डिवाइस भी बना ली है। ये डिवाइस एक्टिव सैटेलाइट की नोजल को बंद कर उसे पूरी तरह बर्बाद कर सकती है। इसकी मदद से चीन दुश्मन देश की सैटेलाइट को अपने कब्जे में भी कर सकता है।

दुश्मन देशों के हेल्थकेयर और डिफेंस इंडस्ट्रियल बेस को निशाना बना रहा

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चीन सरकार अपनी साइबर एक्टिविटी के जरिए लगातार दुश्मन देशों के हेल्थकेयर, फाइनेंशियल सर्विस, डिफेंस इंडस्ट्रियल बेस, एनर्जी, गवर्नमेंट फैसिलिटी और क्रिटिकल मैन्युफैक्चरिंग को निशाना बना रही है।

CISA ने चीन की साइबर एक्टिविटी को लेकर एडवाइजरी भी जारी की है। इसमें बताया गया है कि चीन कोरोना पर काम कर रहे हेल्थकेयर, फार्मास्युटिकल और रिसर्च सेक्टर्स से संवेदनशील डेटा चुराने की कोशिश में लगा है।

US ऑफिस ऑफ द डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस 2021 एनुअल थ्रेट असेसमेंट के मुताबिक, चीन की ओर से सफल और प्रभावी साइबर जासूसी हमला का खतरा बना हुआ है। चीन ऐसे हमले करने की प्रभावी क्षमता रखता है जो उसके दुश्मन देशों के खिलाफ बड़ा खतरा बना हुआ है।

चीन में 1990 में पहली बार साइबर वॉरफेयर पर चर्चा शुरू हुई

कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस रिपोर्ट में साइबर पॉलिसी इनिशिएटिव के विजिटिंग स्कॉलर लियू जिंहुआ लिखते हैं कि चीन में साइबर वॉरफेयर की एकेडमिक चर्चा साल 1990 में शुरू हुई। उस समय इसे इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर कहा जाता था।

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अमेरिकी सेना ने खाड़ी युद्ध, कोसोवो, अफगानिस्तान और इराक में हाई टेक्नोलॉजीज के दम पर बड़ी सफलता हासिल की थी। इससे चीन की सेना काफी प्रभावित हुई।

चीन ने उस वक्त यह महसूस किया कि युद्ध के रूपों में परिवर्तन किए बिना पर्याप्त रूप से अपना बचाव नहीं किया जा सकता। इसलिए युद्ध में इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की भूमिका काफी अहम हो जाती है।

खाड़ी युद्ध के दो साल बाद 1993 में चीनी मिलिट्री स्ट्रैटजिक गाइडलाइन में मॉडर्न टेक्नोलॉजी के जरिए स्थानीय युद्ध जीतने की बात कही गई, ताकि इसके अनुभव किसी दूसरे देशों के साथ होने वाले जंग के दौरान काम आ सकें।

इराक युद्ध के एक साल बाद 2004 में चीनी मिलिट्री स्ट्रैटजिक गाइडलाइन में फिर बदलाव किया गया। अब इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर के तहत स्थानीय युद्ध को जीतने की बात कही गई।

साल 2013 में पहली बार चीन की मिलिट्री ने साइबर वॉरफेयर को सार्वजनिक रूप से अपनी स्ट्रैटजी में शामिल किया। इसका पहला जिक्र चीन की द साइंस ऑफ मिलट्री स्ट्रैटजी में मिलता है।

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भारतीय रेल, बिजली और हाईवे नेटवर्क पर साइबर अटैक कर चुका है चीन

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के फेलो समीर पाटिल ने कहा कि मार्च 2021 में सिंगापुर की कंपनी साइफर्मा ने दावा किया था कि चीन के सरकारी साइबर एक्सपर्ट ने भारत की दो बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की वेबसाइट को हैक करके जानकारी चुराने की कोशिश की थी।

6 अप्रैल 2022 को एक अमेरिकी साइबर सिक्योरिटी फर्म ने पहले ही बता दिया था कि चीन सरकार के साइबर एक्सपर्ट लद्दाख पावर ग्रिड के कंट्रोल रूम की वेबसाइट को हैक कर उसे तबाह करना चाहते हैं।

रिपोर्ट में ये दावा किया गया कि चीन ने अपने जासूसों को भारत के क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी रोड, हाईवे, बिजली, रेल जैसी सुविधाओं को हैक करने की खुली छूट दी है।

अक्टूबर 2020 में मुंबई के पावर ग्रिड ने काम करना बंद कर दिया। इसकी वजह से मुंबई में पूरी तरह से अंधेरा छा गया। बाद में ये बात सामने आई कि चीन के साइबर हैकर ग्रुप की ‘रेडइको’ कंपनी ने भारतीय पावर ग्रिड को हैक किया था।

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इसी साल चीन के इन हैकर्स ने भारत के दो बड़े पोर्ट और रेलवे सिस्टम को हैक करके देश के ट्रांसपोर्ट सिस्टम को पूरी तरह से स्थिर करने की कोशिश की थी।

न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि चीनी हैकर्स की फौज ने अक्टूबर 2020 में मात्र 5 दिनों के अंदर भारत के पावर ग्रिड, IT कंपनियों और बैंकिंग सेक्टर्स पर 40,300 बार साइबर अटैक का प्रयास किया।

गलवान में झड़प के बाद चीन यह दिखाने की कोशिश में था कि यदि LAC पर कोई कार्रवाई की गई तो वह भारत के अलग-अलग पावर ग्रिड पर मैलवेयर अटैक के जरिए उन्हें बंद कर देगा।

चीन का सामना करने के लिए भारत कितना तैयार है?

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की फेलो श्रविष्ठा अजय कुमार ने कहा कि साइबर वॉरफेयर के मामले में भारत दुनिया में तीसरी कैटेगरी के देशों में शामिल है। इसका मतलब ये हुआ कि अभी भारत साइबर वॉरफेयर के मामले में बेहद कमजोर है।

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2019 में भारत दुनिया के सबसे ज्यादा साइबर अटैक के शिकार होने वाले देशों में शामिल था। इस साल चीन ने भारत पर 50 हजार से ज्यादा बार साइबर अटैक किए।

साइबर वॉरफेयर के मामले में भारत को साइबर हमले से बचने और साइबर हमले के जवाब देने यानी दोनों ही मोर्चों पर काम करना होगा।

हालांकि किसी देश से साइबर वॉर को लेकर भारत की तैयारी न के बराबर है। पिछले 2 दशक से चीन साइबर सिक्योरिटी के क्षेत्र में काम कर रहा है। भारत ने इस क्षेत्र में अभी काम करना सही से शुरू भी नहीं किया है।

साइबर वॉरफेयर में कौन देश कितना मजबूत है ये 3 बातों पर निर्भर करता है…

1. देश का डिजिटल इकोनॉमी सिस्टम कितना सेफ है।

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2. देश की इंटेलिजेंस और सिक्योरिटी सिस्टम कितना मजबूत है।

3. देश के मिलिट्री ऑपरेशन में साइबर सिस्टम का कितना सेफ और सिक्योर इस्तेमाल होता है।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के नेशनल साइबर पावर इंडेक्स के मुताबिक, साइबर वॉरफेयर में अमेरिका के बाद चीन दूसरे नंबर पर है। इस मामले में अमेरिका और चीन को अगर कोई देश टक्कर देता है तो वो रूस है।

रूस-यूक्रेन जंग से समझिए साइबर वॉरफेयर कितना अहम

24 फरवरी 2022 को जंग शुरू होने से कुछ घंटे पहले अचानक यूक्रेनी सेना के कई राउटर्स ने काम करना बंद कर दिया। इससे यूक्रेनी सेना के बीच संपर्क टूट गया।

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रूस के इस साइबर हमले में सैटेलाइट इंटरनेट प्रोवाइड कराने वाली अमेरिकी कंपनी वियासेट ने काम करना बंद कर दिया। इसका असर यूक्रेन के अलावा पोलैंड, इटली और जर्मनी में भी देखने को मिला।

इन देशों में सैकड़ों विंड टरबाइन कई दिनों तक बंद रही। काफी सारे लोगों का सिस्टम हैक हो गया। वहीं कई सारे लोगों के सिस्टम में वायरस अटैक का मैसेज आने लगा।

रूस की तरह ही चीन भी साइबर अटैक के जरिए सैटेलाइट से अपने दुश्मनों के सिस्टम तक पहुंचने वाले सिग्नल को रोकना चाहता है। इसकी वजह ये है कि आज के समय में जंग के दौरान इन्फॉर्मेशन अहम भूमिका निभाती है।

ऐसे में उन तक सूचना को पहुंचने से रोककर चीन अपने दुश्मन देश पर भारी होना चाहता है। इसके लिए चीन दो तरीके अपनाता है-

1. दुश्मनों के सैटेलाइट को पूरी तरह से तबाह कर।

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2. उसके सिग्नल को हैक कर उसे दुश्मन देश तक पहुंचने से रोक कर।

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