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दिल्ली

पढ़ाई, इलाज, नौकरी, किसानी, बजट पर क्या बोले लोग,न फीस कम, न दवाएं सस्ती, जॉब्स भी गायब; ट्रेन ही टाइम पर चलवा दें..

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प्रियांशु UP के गाजीपुर के छोटे से गांव जखनिया के रहने वाले हैं। करीब 130 दिन से फीस बढ़ने के विरोध में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कैंपस में धरने पर बैठे हैं। पिता का नाम राम आसरे हैं। छोटी सी खेती से गुजारा चलता है।

रुआंसे होकर कहते हैं- ‘दो बहनें हैं। सोचा था, पढ़-लिख लूं तो उनकी शादी करने में पिताजी की मदद करूंगा। अब तो फीस इतनी बढ़ गई है कि पढ़ाई पूरी होगी, इसी का भरोसा नहीं। उम्मीद थी बजट से कुछ राहत मिलेगी, कोई ऐलान होगा, लेकिन सब छलावा है।’

1 फरवरी को मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का आखिरी बजट पेश किया। इस बजट पर एक्सपर्ट्स ने मिले-जुले रिएक्शन दिए हैं। किसी ने 7 लाख तक इनकम टैक्स फ्री करने की तारीफ की, तो किसी ने इसे बेरोजगारों और किसानों के लिए बुरा बताया।

एक्सपर्ट्स अपनी जगह हैं, लेकिन स्टूडेंट्स, होम मेकर्स, किसान और टैक्सपेयर्स को ये बजट कैसा लगा। क्या उनकी जिंदगी में इससे कोई बदलाव आएगा, राहत मिलेगी? इन सवालों को लेकर हमने 6 शहरों में अलग-अलग लोगों से बात की…

प्रयागराज: मम्मी-पापा से फीस मांगने में शर्म आती है
बजट से स्टूडेंट्स को क्या मिला, ये जानने के लिए हम उन छात्रों से मिलने पहुंचे, जो 14 सितंबर 2022 से एक बार में 400% फीस बढ़ाए जाने के विरोध में धरने पर बैठे हैं। एक वक्त था, जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था, यहां आज भी यूपी और आस-पास के राज्यों से आने वाले और आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति वाले हजारों बच्चे पढ़ते हैं।यहां हमारी मुलाकात ग्रेजुएशन सेकेंड ईयर में पढ़ रहे रवि सिंह रिंकू से हुई। रिंकू भी प्रोटेस्ट कर रहे लोगों में शामिल हैं। बजट का सवाल करते ही भड़क जाते हैं, कहते हैं- ‘स्टूडेंट्स के लिए कोई राहत नहीं दी। उम्मीद थी कि बढ़ती हुई फीस पर कुछ बोलेंगे, कोई घोषणा करेंगे। सोचा था, मेरे जैसे गांव-देहात से आने वाले स्टूडेंट्स के लिए सस्ती पढ़ाई का कोई इंतजाम करेंगे।’यहां हमारी मुलाकात ग्रेजुएशन सेकेंड ईयर में पढ़ रहे रवि सिंह रिंकू से हुई। रिंकू भी प्रोटेस्ट कर रहे लोगों में शामिल हैं। बजट का सवाल करते ही भड़क जाते हैं, कहते हैं- ‘स्टूडेंट्स के लिए कोई राहत नहीं दी। उम्मीद थी कि बढ़ती हुई फीस पर कुछ बोलेंगे, कोई घोषणा करेंगे। सोचा था, मेरे जैसे गांव-देहात से आने वाले स्टूडेंट्स के लिए सस्ती पढ़ाई का कोई इंतजाम करेंगे।’

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गाजीपुर के प्रियांशु से सवाल किया तो बोले- ‘कौशल विकास के नाम पर 3 साल तक युवाओं को भत्ता दे रहे हैं। इससे क्या फ्यूचर बनेगा? नौकरी दे देते, पढ़ाई सस्ती कर देते, तो हमें कुछ मिलता भी। नौकरियों और बेरोजगारी पर तो कुछ बोला ही नहीं।’

बातचीत सुनकर पास में खड़े BA फाइनल ईयर के स्टूडेंट अभिषेक यादव भी आ जाते हैं, कहते हैं- ‘मैं जौनपुर का हूं। मेरे गांव में आज भी ज्यादातर लोग 12वीं से आगे नहीं पढ़ पाते, पढ़ भी लें तो नौकरी नहीं मिलती। पिताजी की कमाई मुझे पता है, उनसे फीस मांगने में शर्म आती है।’

पटना में बीते कई महीनों से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे और टीचर्स ट्रेनिंग कर चुके युवा प्रदर्शन कर रहे हैं, लाठियां खा रहे हैं। दिसंबर 2022 में हुए एक सरकारी सर्वे में बिहार के 19% पढ़े-लिखे लोगों ने खुद को बेरोजगार बताया है। बेरोजगारी पर बजट कैसा रहा, ये जानने निकले तो पटना में आशीष कुमार से मिले। आशीष 10 साल से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। सहरसा से पटना आए थे।

बिहार लोक सेवा आयोग और बिहार कर्मचारी आयोग की दो परीक्षाओं में शामिल हुए। दोनों के पेपर लीक हो गए। अब नौकरी के लिए प्रदर्शन में शामिल हैं। पिछले दो महीने में तीन बार लाठियां खा चुके हैं।

वे कहते हैं- ‘बजट में कितनी नौकरियों ऐलान हुआ है? आपको पता चले तो हमें भी बता देना। हमारे पास केंद्र और राज्य में टीचर की नौकरी के लिए सभी जरूरी डिग्री हैं, CTET-STET एग्जाम भी पास किया है, लेकिन वैकेंसी कहां है? स्किल देने के नाम पर योजनाएं चल रही हैं, ट्रेनिंग हो रही। सर्टिफिकेट मिल जाता है, लेकिन नौकरी है ही नहीं।’

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