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PM मोदी की सूडान से भारतीयों को निकालने पर बैठक..
सूडान में चल रही लड़ाई के बीच फंसे भारतीयों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाई-लेवल मीटिंग की। इसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर समेत कई प्रमुख लोग मौजूद रहे। इस दौरान उन्होंने सूडान में हालात का जायजा लेने के साथ ही भारतीयों को निकालने पर चर्चा की। इससे पहले गुरुवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सूडान के लगातार बिगड़ते हालात पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस से मुलाकात की थी।
दरअसल, सूडान में पिछले कई दिनों से मिलिट्री और पैरामिलिट्री के बीच लड़ाई जारी है। WHO के मुताबिक, इसमें अब तक 400 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 3500 लोग घायल हुए हैं। इस लड़ाई का केंद्र बनी राजधानी खार्तूम में भारत के करीब डेढ़ हजार नागरिक भी फंसे हुए हैं। वहीं सूडानी शहर अल-फशेर में कर्नाटक के हक्की-पिक्की आदिवासी समुदाय के 31 लोग शामिल हैं।
जयशंकर बोले- हमारा फोकस भारतीयों की सुरक्षा और युद्धविराम पर
वहीं केरल के CM पिनरई विजयन ने भी PM मोदी को चिट्ठी लिखकर सूडान में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी का अनुरोध किया। इससे पहले UN चीफ एंटोनियो गुटेरेस से बातचीत के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था- हमारा पूरा ध्यान इस बात पर है कि व्यावहारिक, जमीनी स्तर पर युद्धविराम कैसे हासिल किया जाए। भारत सीजफायर के समर्थन में है और हम इसके लिए पूरी कोशिश करेंगे।
इससे पहले विदेश मंत्री ने भारतीयों की सुरक्षित वापसी को लेकर मंगलवार को ट्वीट किया था। उन्होंने कहा था- सूडान में हालात बिगड़ने के बाद से ही भारतीय दूतावास वहां फंसे लोगों को निकालने के लिए हर संभव कोशिशों में जुटा है। वो भारतीयों नागरिकों के लगातार संपर्क में है। हम हर घटना पर नजर बनाए हुए हैं। फिलहाल सुरक्षा को देखते हुए हम नागरिकों की लोकेशन साझा नहीं कर सकते हैं।
सूडान में फंसे हैं कर्नाटक के 31 आदिवासी
बता दें कि कर्नाटक के 31 आदिवासी सूडान में फंस हुए हैं। सभी लोग सूडानी शहर अल-फशेर में रह रहे हैं। ये लोग आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी बेचने के लिए सूडान गए थे। इनमें से 19 लोग कर्नाटक के हुनसूर, 7 शिवामोगा और 5 लोग चन्नागिरी के रहने वाले हैं। सूडान में फंसे भारतीयों में से एक एस. प्रभू ने मंगलवार को इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर बात की थी। उसने बताया था कि हम पिछले 4-5 दिनों से एक किराए के मकान में फंसे हुए हैं। हमारे पास खाना या पीने के लिए कुछ भी नहीं है। बाहर से लगातार धमाकों की आवाज आ रही है। यहां कोई हमारी मदद करने को तैयार नहीं है।
सूडान में दूतावास खाली करने की तैयारी में अमेरिका
वहीं अमेरिका ने भी लड़ाई को देखते में सूडान में मौजूद दूतावास के कर्मचारियों को निकालने की तैयारी शुरू कर दी है। पेंटागन ने अफ्रीकी देश जिबूती में सैनिकों को भेजना शुरू कर दिया है। अधिकारियों ने कहा कि लड़ाई के बीच से दूतावास के लोगों को निकालना काफी मुश्किल होगा। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक सूडान में अमेरिका के 19 हजार से ज्यादा नागरिक मौजूद हैं।
कौन हैं सूडान में सेना से लड़ने वाले रैपिड सपोर्ट फोर्स के लड़ाके?
2000 के दशक में सूडान के पश्चिमी इलाके डार्फर में विद्रोह शुरू हो गया था। इससे निपटने के लिए सेना ने जंजावीद मिलिशिया की मदद ली। ये मिलशिया ही आगे चलकर रेपिड सपोर्ट फोर्स में बदल गया और अलग-अलग मिशन में सेना की मदद करने लगा।
डार्फर इलाके में हुआ विद्रोह सबसे जानलेवा विद्रोह में शामिल है। 2003 से 2008 के बीच इस लड़ाई में 3 लाख लोगों की जान गई। वहीं, 20 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने 2009 में इस मामले में सूडान के तानाशाह ओमार हसन अल बशीर पर मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार के आरोप लगाए थे।
तानाशाह अल बशीर ने डार्फर विद्रोह कुचलने में मदद करने वाले जंजावीद लड़ाकों को सरकारी दर्जा देना चाहता था। इसके चलते 2013 में इसे RSF में बदल दिया गया।
5 पॉइंट्स में समझें सूडान में हिंसा की वजह…
- सूडान में मिलिट्री और पैरामिलिट्री के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। 2019 में सूडान के तत्कालीन राष्ट्रपति ओमर अल-बशीर को सत्ता से हटाने के लिए लोगों ने प्रदर्शन किया।
- अप्रैल 2019 में सेना ने राष्ट्रपति को हटाकर देश में तख्तापलट कर दिया, लेकिन इसके बाद लोग लोकतांत्रिक शासन और सरकार में अपनी भूमिका की मांग करने लगे।
- इसके बाद सूडान में एक जॉइंट सरकार का गठन हुआ, जिसमें देश के नागरिक और मिलिट्री दोनों का रोल था। 2021 में यहां दोबारा तख्तापलट हुआ और सूडान में मिलिट्री रूल शुरू हो गया।
- आर्मी चीफ जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान देश के राष्ट्रपति और RSF लीडर मोहम्मद हमदान डागालो उपराष्ट्रपति बन गए। इसके बाद से RSF और सेना के बीच संघर्ष जारी है।
- सिविलियन रूल लागू करने की डील को लेकर मिलिट्री और RSF आमने-सामने हैं। RSF सिविलियन रूल को 10 साल बाद लागू करना चाहती है, जबकि आर्मी का कहना है कि ये 2 साल में ही लागू हो जाना चाहिए।
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