धार्मिक ज्ञान/विज्ञान
मकर संक्रांति के साथ आज उत्तरायण पर्व,संक्रांति मनाने के 4 कारण, कभी 14 तो कभी 15 क्यों मनाई जाती है संक्रांति
मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग (कैलेंडर) के अनुसार मकर राशि में सूर्य के प्रवेश का समय है, जिसे ‘उत्तरायण’ कहा जाता है। इस त्योहार को भारत और नेपाल में विभिन्न नामों से मनाया जाता है जैसे कि मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, भोगाली बिहु आदि।
यहाँ मकर संक्रांति को 14 या 15 जनवरी को मनाने के कुछ कारण हैं:
- सूर्य में परिवर्तन: मकर संक्रांति का समय सूर्य के गतिविधियों का महत्वपूर्ण समय है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जिससे दिन का समय बढ़ता है और रात का समय कम होता है। इसे उत्तरायण के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘उत्कृष्ट यात्रा’।
- कृषि से जुड़ा होना: इस समय फसलों का काटा जाता है और नए बुआई के लिए तैयारी शुरू होती है। मकर संक्रांति को एक नए कृषि समय का प्रतीक माना जाता है।
- हिन्दू पंचांग के अनुसार: हिन्दू पंचांग (लुनिसोलर कैलेंडर) के अनुसार मकर संक्रांति को मनाने का समय 14 या 15 जनवरी को आता है, जो वार्षिक रूप से बदलता है।
- धार्मिक महत्व: मकर संक्रांति हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है और इसे सूर्य की पूजा और स्नान के साथ मनाया जाता है। इसे धार्मिक रूप से पवित्र माना जाता है और लोग इस दिन दान और कर्म करके अच्छाई की ओर बढ़ते हैं।
इन कारणों से मकर संक्रांति का त्योहार भारतीय समाज में महत्वपूर्ण है और इसे विभिन्न रूपों में पूरे देश में मनाया जाता है।
पहली मान्यता
जब सूर्य देव शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य और शनि पिता-पुत्र हैं। शनि अपने पिता सूर्य को शत्रु मानता है, लेकिन एक मान्यता ये है कि मकर संक्रांति पर सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने उसके घर जाते हैं। पहली बार जब सूर्य शनि के घर गए थे, तब इनके बीच के मतभेद दूर हो गए थे।
दूसरी मान्यता
राजा भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष नहीं मिला था। पूर्वजों के मोक्ष के लिए देवी गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाना था। देवी गंगा को धरती पर लाने का काम राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से किया था। देवी गंगा धरती पर आईं तो मकर संक्रांति पर भागीरथ के पूर्वजों की अस्थियों से गंगा जल स्पर्श हुआ था और सभी पूर्वजों को मोक्ष मिल गया था। इस मान्यता की वजह से मकर संक्रांति पर गंगा नदी में स्नान करने की परंपरा है।
तीसरी मान्यता
मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में इसे देवताओं के दिन की शुरुआत माना जाता है। महाभारत युद्ध के बाद भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राण त्यागे थे। उस समय माना जाता था कि मकर संक्रांति पर मरने वाले लोगों को मोक्ष मिल जाता है। मोक्ष यानी मरने के बाद आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता है।
चौथी मान्यता
सूर्य के मकर राशि में आने से खरमास खत्म हो जाता है और मांगलिक कार्यों के लिए फिर से शुभ मुहूर्त मिलने लगते हैं। खरमास में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ जैसे मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं, लेकिन मकर संक्रांति के बाद ये शुभ काम फिर से शुरू हो जाएंगे।
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