छत्तिश्गढ़
चाय बेचते थे मशहूर कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा: पिता लगाते थे चने का ठेला, भरपेट खाना भी नहीं मिलता था फिर शिव ने संवारा जीवन…
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गुढ़ियारी इलाके में ऑटो वाले जाने से कतरा रहे हैं। ट्रैफिक जाम इतना है कि 500 फीट की ऊंचाई से ड्रोन तस्वीरें लेने पर सिवाए भीड़ में लोगों के सिर के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा। गलियां खचाखच गाड़ियों की पार्किंग से फुल हैं। सैंकड़ों वालंटियर और पुलिस के जवान व्यवस्था संभालने में लगे हैं। गुढियारी के दही हांडी मैदान में पंडित प्रदीप मिश्रा की शिव पुराण कथा का आयोजन किया जा रहा है। यहां रोज 2 लाख से अधिक लोगों की भीड़ हर दिन जुट रही है।
अस्पताल में जन्म हो सके इतने पैसे नहीं थे
मध्यप्रदेश के सीहोर में जन्में पंडित प्रदीप मिश्रा अपने शुरुआती जीवन के बारे में बताते हैं। उन्होंने कहा- मेरा जन्म घर के आंगन में तुलसी की क्यारी के पास हुआ था, क्योंकि अस्पताल में जन्म के बाद दाई को जो रुपए दिए जाते थे उतने भी हमारे पास नहीं थे। मेरे पिता स्व. रामेश्वर मिश्रा पढ़ नहीं पाए। चने का ठेला लगाते थे। बाद में चाय की दुकान चलाई, मैं भी दुकान में जाकर लोगों को चाय दिया करता था।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया- मेरा कोई लक्ष्य नहीं था, मैं दूसरों के कपड़े पहनकर स्कूल गया, दूसरों की किताबों से पढ़ा। बस यही चिंता रहती थी कि पेट भर जाए और परिवार को संभाल लें। भगवान शिव ने पेट भी भरा और जीवन भी संवारा। हमें याद है, बहन की शादी का जिम्मा था, मुझे याद है सीहोर के एक सेठ की बेटी की शादी हुई तो भवन में डेकोरेशन था। हम उस सेठ के पास हाथ जोड़कर कहने गए थे कि वो अपना डेकोरेशन रहनें दें ताकि इसी में हमारी बहन की शादी हो जाए।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया कि सीहोर में ही एक ब्राह्मण परिवार की गीता बाई पराशर नाम की महिला ने उन्हें कथा वाचक बनने प्रेरित किया। वो दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम करती थीं। मैं उनके घर पर गया था, उन्होंने मुझे गुरुदीक्षा के लिए इंदौर भेजा। मेरे गुरु श्री विठलेश राय काका जी ने मुझे दीक्षा दी। पुराणों का ज्ञान दिया।
पंडित मिश्रा बताते हैं कि उनके गुरु के मंदिर में सैंकड़ो पक्षी रहते हैं। गुरु पक्षियों से श्री कृष्ण बुलवाते थे। मंत्र बुलवाते थे। पक्षी भी हमारे गुरुधाम में हरे राम हरे कृष्ण, बाहर निकलो कोई आया है… बोलते हैं। मुझे याद है मैं जब उनके पास गया था तो मुझे देखते ही उन्होंने मेरी गुरुमाता अपनी पत्नी से कहा- बालक आया है भूखा है, इसे भोजन दो। इसके बाद उन्होंने मुझे आशीर्वाद देकर कहा था तुम्हारा पंडाल कभी खाली नहीं जाएगा। शुरुआत में मैंने शिव मंदिर में कथा भगवान शिव को ही सुनाना शुरू किया। मैं मंदिर की सफाई करता था। इसके बाद सीहोर में ही पहली बार मंच पर कथावाचक के रूप में शुरुआत की।
अपने कथा के कार्यक्रमों में पंडित प्रदीप मिश्रा लोगों से कहते हैं एक लोटा जल समस्या का हल। इसके बारे में उन्होंने कहा- शिव बाबा की कृपा होती है जल चढ़ाने से। माता पार्वती भी उन्हें जल चढ़ाती थीं। भगवान गणेश जी भी। भगवान राम जब अयोध्या से निकले और जहां-जहां रुके शिवलिंग बनाए और जल चढ़ाया। जल का महत्व ये है कि हम अपने हृदय भाव भगवान को अर्पित कर रहे हैं। हृदय में शिव का ध्यान करके जल चढ़ाइए और अपनी समस्या भगवान से साझा करिए। हमारे यहां शिव पुराण में कमल गट्टे के जल का प्रयोग बताया गया है। इसे शुक्रवार के दिन भगवान शिव पर चढ़ाएं, इससे लक्ष्मी आती है और आरोग्यता रहती है।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा- भगवान शिव कर्म करने को कहते हैं। हम अपनी कथा में भी लोगों से यही कहते हैं कि कर्म करिए और विश्वास के साथ भगवान शिव की आराधना करें। भगवान शिव ने अपने पुत्रों को विष्णु की तरह बैकुंठ और रावण को दी गई सोने की लंका नहीं दी। उन्होंने उन्हें भी कर्म करने दिया।
पं प्रदीप मिश्रा ने कहा- आजकल युवा नशे की ओर जा रहे हैं। आज के पोस्टर्स भगवान शिव को गांजा पीते या चिलम के साथ दिखाया जाता है। शिव जी ने कोई नशा नहीं करा। जब विष भेजा गया तब उसे पीते समय जो बूंदे गिरीं वो भांग धतूरा बनीं। वो सिर्फ शिव के पास रखी होती हैं, उनका सेवन शिव नहीं करते। स्वयं माता पार्वती ने शिव जी से पूछा था आप किस नशे में रहते हैं तो उन्होंने कहा थ राम नाम का नशा है। यहां आकर लोग शिव का नशा कर रहे हैं तो दूसरे नशे की जरूरत ही नहीं। यहां हम कौन सा भांग का प्रसाद बंट रहे हैं। यहां लोग जो आए हैं शिव के भक्ति रस में मस्त हैं।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा- कोई बेल दे रहे हैं, भभूत दे रहे हैं या चमत्कार प्रकट करने का दावा कर रहे हैं तो ये अंधविश्वास है। कोई कहता है जमीन में से सोने से भरा हंडा निकलेगा तो मैं खुद कहता हूं भाई मुझे भी बता दो कहां से निकलेगा। ये सब अंधविश्वास हैं। आस्था में अंतर है। आस्था में आपने किसी के प्रति काम किया आपके प्रति विश्वास बढ़ गया। ये आस्था है, दिखावा नहीं, हम तो कहते हैं घर के करीब शंकर का स्मरण करो दूर जाकर शिवालय श्रेष्ठ समझकर वहां पूजा करने से लाभ नहीं। अपनी आस्था से अपने आस-पास ही शिव को महसूस किया जा सकता है।
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