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उत्तर प्रदेश

कल्याण सिंह के इस्तीफा देने की बात पर आडवाणी ने कहा था टाइम पास करिए…

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6 दिसंबर 1992, अयोध्या में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, विनय कटियार, उमा भारती जैसे नेता 65 एकड़ में प्रतिहिंसा की हुंकार लगाती भीड़ को समझाने की कोशिश कर रहे थे। माइक से हिन्दी, अंग्रेजी, तेलुगु, तमिल में लोगों से लौट जाने की अपील कर रहे थे। कार सेवकों ने किसी की नहीं सुनी। बढ़ते गए। रोकने के लिए लगे कटीले तारों को कुचलते गए। और विवादित ढांचे को तहस-नहस कर दिया।

विश्व हिन्दू परिषद ने ऐलान किया था कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में प्रतीकात्मक कार सेवा की जाएगी। उसके लिए एक जगह चुन ली गई थी जहां अक्षत, फूल, पानी डालकर पूजा करके सभी को अपने घर लौट जाना था।

देश के अलग-अलग हिस्सों से दो लाख लोग पहुंच चुके थे। इन सभी को संबोधित करने के लिए उस वक्त के सबसे चर्चित लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार जैसे कई दिग्गज नेता अयोध्या पहुंचे थे।

6 दिसंबर की सुबह 7 बजे उस वक्त के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने विश्व हिन्दू परिषद के नेता विनय कटियार से बात की। अयोध्या की स्थिति के बारे में पूछा। विनय कटियार ने उस वक्त के प्रधानमंत्री राव को कहा, “यहां सब कुछ कंट्रोल में है। आप बेफिक्र रहें।”

फोन रखने के बाद वहां लालकृष्ण आडवाणी, जोशी और सिंघल पहुंचे। भीड़ के अंदर गुस्सा था। इस बात की जानकारी वहां मौजूद सभी नेताओं को थी। आडवाणी ने कटियार से पूछा था कि इन्हें कैसे मैनेज किया जाएगा? कटियार ने सब सही होने का आश्वासन दिया था।

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सुबह साढ़े आठ बजे उस वक्त के सीएम कल्याण सिंह ने कटियार को फोन किया। आडवाणी, सिंघल से भी बात की। तीनों नेताओं ने उन्हें भी आश्वासन दिया कि किसी तरह की कोई अनहोनी नहीं होगी।

पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं, सुबह 9:45 बजे एडिशनल एसपी अंजू गुप्ता आडवाणी, सिंघल और जोशी को लेकर मौके पर पहुंची तो कार सेवक उत्तेजित हो गए। उन्हें लगा कि ये लोग फिर से कार सेवा रोक देंगे। उत्तेजित भीड़ बैरिकेडिंग तोड़कर चबूतरे तक पहुंचने लगी। आडवाणी और जोशी को धक्का दे दिया गया। RSS और बजरंग दल के कार्यकर्ता तीनों नेताओं को भीड़ से बचाते हुए रामकथा कुंज के मंच तक ले गए।

11 बजे रामकुंज मंच से भाषण शुरू हुआ। सभी की पहली लाइन होती थी कि प्रतीकात्मक कार सेवा करके यहां से हम लोग वापस चले जाएंगे। लेकिन सभी के भाषणों में आक्रोश का प्रतीक ढांचा ही था। सारे नेता बाबरी की तरफ उंगली करके उसे गुलामी का प्रतीक बताते।

12 बजे लालकृष्ण आडवाणी भाषण दे रहे थे तभी शेषावतार मंदिर की तरफ से बढ़ रही भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया। पुलिस के पास बचने का कोई उपाय नहीं था। वह भागे तो भीड़ ने कटीली बैरिकेडिंग तोड़ दी।

मंच पर आडवाणी बोल ही रहे थे कि उनके सामने ही 5 मिनट के अंदर 25 हजार कार सेवक विवादित इमारत के एकदम पास पहुंच गए। करीब दो सौ लोग गुंबद पर चढ़ गए। अचानक पूरी की पूरी व्यवस्था फेल हो गई। लाखों की संख्या में जो कार सेवक रामकथा कुंज में भाषण सुन रहे थे वह भी विवादित ढांचे की तरफ भागने लगी।

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आडवाणी माइक लेकर विवादित जगह से लोगों को लौटने की अपील करते रहे। लेकिन कार सेवक सुनने को तैयार नहीं। इसके बाद माइक अशोक सिंघल ने संभाला। उन्होंने कहा, विवादित भवन मस्जिद नहीं मंदिर है। कार सेवक उसे नुकसान न पहुंचाएं। रामलला की सौगंध है वे नीचे उतर आएं। लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। तभी पता चला कि जो गुंबद पर चढ़े हैं वो दक्षिण के कार सेवक हैं। इसके बाद माइक दिया गया एच.वी शेषाद्रि को।

संघ के शीर्ष नेता रहे शेषाद्रि ने दक्षिण की चारों भाषाओं में लोगों से उतर जाने की अपील की। लेकिन कोई असर नहीं पड़ा। देखते ही देखते हथौड़े, गैंती, बेलचा, लोहे की नुकीली रॉड और ड्रिल मशीन निकल आई और 2 बजकर 45 मिनट पर एक गुंबद को ढहा दिया गया।

प्रयागराज के फोटो जर्नलिस्ट SK यादव उस वक्त घटना स्थल पर थे। वह बताते हैं, “11 बजे तक सरयू से लौटी लाखों कारसेवकों की भीड़ विवादित ढांचे के बाहर एक किलोमीटर के दायरे में इकट्ठा हो चुकी थी। हिन्दुवादी नेताओं को सामने देखते ही भीड़ आपा खोने लगी। नारों में बाबरी मस्जिद तोड़ने और मंदिर निर्माण तुरंत शुरू करने की आवाज बढ़ने लगी। रामकथा कुंज कंट्रोल रूम के नीचे के कमरे से करीब 250 कारसेवक बड़े-बड़े हथौड़े, सड़क खोदने वाला औजार, बेलचा, रस्से लेकर विवादित ढांचे की तरफ बढ़े।”

हेमंत अपनी किताब में लिखते हैं, “उस वक्त के डीएम आर.एन श्रीवास्तव ने वहां मौजूद CRPF के DIG मलिक से अनुरोध किया कि हमें 50 कंपनी CRPF दी जाए। क्योंकि हालात बेकाबू हो गए थे। यह पहला मौका था जब किसी पुलिस बल ने अपनी सुरक्षा में किसी और पुलिस बल की मांग की थी।”

हेमंत अपनी किताब में लिखते हैं, लालकृष्ण आडवाणी ने कोई भड़काऊ नारा नहीं लगाया। तोड़फोड़ बढ़ी तो वह मंच छोड़कर चले गए। तब मंच पर उमा भारती ने भीड़ को दो नारा दिया। पहला- “राम नाम सत्य है, बाबरी मस्जिद ध्वस्त है।” दूसरा- “एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो।” दूसरे वाले नारे ने कार सेवकों को उग्र कर दिया। यह नारा उस वक्त हर किसी की जुबान पर था।

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अयोध्या से हिंसा की खबर आने लगी तो तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे। उन्होंने कहा, अगर सब कुछ पूर्वनियोजित था तो उन्हें पहले से क्यों नहीं बताया गया? उन्होंने आडवाणी को फोन लगाकर कहा, “वे इस्तीफा देने जा रहे।” आडवाणी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। कहा, “अभी इस्तीफा देंगे तो यहां केंद्र का शासन लग जाएगा, केंद्रीय फोर्स लग जाएगी। थोड़ा टाइम पास करिए।”

5 बजे इमारत के तीनों गुंबद ढहा दिए गए। मुरली मनोहर जोशी ने इमारत ध्वस्त होने पर कार सेवकों को बधाई दी। उनसे अपील की कि अयोध्या के मुसलमानों से कोई दुश्मनी नहीं है, उनके घरों और दुकानों पर हमला न करें। स्थानीय विधायक लल्लू सिंह को निर्देश दिया कि जीप से घूम-घूमकर लोगों को ऐसा करने से रोकें लेकिन लोगों के गुस्से को देखते हुए लल्लू सिंह घर से ही नहीं निकले।

शाम 7 बजे केंद्र सरकार ने यूपी सरकार को बर्खास्त कर दिया। राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। लोगों को अयोध्या से बाहर निकालने के लिए 16 स्पेशल ट्रेनें लगीं। लालकृष्ण आडवाणी, अशोक सिंघल दिल्ली लौट आए। विनय कटियार वहीं रहे। विश्व हिन्दू परिषद के बाकी नेता भी अपने-अपने घर चले गए।

सीबीआई ने 5 अक्टूबर 1993 को इस मामले में पहली चार्जशीट दाखिल की। इसमें 40 लोगों को आरोपी बनाया था। इसमें 8 बीजेपी-विहिप के नेता भी शामिल थे। 2 साल तक जांच चली। 1996 में सीबीआई ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल कर दी। आरोप लगाया गया कि बाबरी मस्जिद गिराने की एक सुनियोजित साजिश थी।

यहां सीबीआई ने एफआईआर में 9 और लोगों को जोड़ा। उनके खिलाफ आपराधिक साजिश यानी आईपीसी की धारा 120(बी) के तहत आरोप लगाए। इसमें शिवसेना के नेता बाल ठाकरे और मोरेश्वर सावे शामिल थे। 1997 में लखनऊ मजिस्ट्रेट ने सभी 48 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के आदेश दिए। लेकिन 34 आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में आरोप तय करने के खिलाफ ही याचिका लगा दी। इससे आरोप तय करने की प्रक्रिया पर रोक लग गई।

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अगले चार साल तक इस मामले में कुछ भी नहीं हुआ। हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर की वजह से कागज तक नहीं हिला। 12 फरवरी 2001 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आडवाणी, जोशी, कल्याण सिंह, उमा, विनय कटियार और अन्य के खिलाफ आपराधिक साजिश की धारा हटाने का आदेश दिया।

घटना के 28 साल बीत गए। 48 आरोपियों में 32 बचे। 16 नहीं रहे। सीबीआई कोर्ट के जज एसके यादव ने अपने रिटायरमेंट से एक दिन पहले फैसला सुनाया। फैसले में कहा, सीबीआई किसी के खिलाफ एक भी आरोपी साबित नहीं कर सकी। इसलिए सभी आरोपियों को बरी किया जाता है।

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