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उत्तरकाशी की टनल में 52 मीटर हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग पूरी,7-8 मीटर बाकी, 24 घंटे में मिल सकती है अच्छी खबर,मोदी बोले- मजदूरों के लिए प्रार्थना करें
उत्तराखंड की सिल्क्यारा-डंडालगांव टनल में 12 नवंबर से फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए कोशिशें तेज हो गई हैं। एक साथ वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग की जा रही है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अब तक अच्छे परिणाम मिले हैं, सब ठीक रहा तो अगले 24 घंटे में अच्छी खबर मिल सकती है।
टनल के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग 40 मीटर तक हो चुकी है। अब 46 मीटर और होनी है। मजदूरों तक पहुंचने के लिए 86 मीटर की वर्टिकल ड्रिलिंग होनी है।
उधर, रैट माइनर्स को हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग में भी कामयाबी मिली है। सोमवार शाम से अब तक करीब 3 मीटर मैनुअल ड्रिलिंग की गई। सुरंग बचाव माइक्रो टनलिंग एक्सपर्ट क्रिस कूपर ने कहा, ‘कल रात रेस्क्यू का काम बहुत अच्छा रहा। अब तक रेस्क्यू के नतीजे बहुत सकारात्मक हैं।’
CM धामी ने बताया कि मंगलवार सुबह तक 52 मीटर तक खुदाई हो चुकी है। अब फंसे हुए मजदूरों से 7 से 8 मीटर दूरी रह गई है।
शुक्रवार यानी 24 नवंबर को मजदूरों की लोकेशन से महज 12 मीटर पहले मशीन की ब्लेड्स टूट गई थीं। इस वजह से रेस्क्यू रोकना पड़ा। बता दें 12 नवंबर को निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा ढह गया था। इसके चलते सुरंग में काम कर रहे 41 मजदूर अंदर फंस गए थे।
मोदी बोले- टनल में फंसे मजदूरों के लिए प्रार्थना करें
हैदराबाद में सोमवार को PM मोदी ने कहा, ‘फंसे हुए श्रमिकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। आज जब हम भगवान से प्रार्थना करते हैं और मानवता के कल्याण की बात करते हैं तो हमें अपनी प्रार्थना में उन श्रमिक भाइयों को भी शामिल करना चाहिए जो उत्तराखंड की एक सुरंग में फंसे हुए हैं।’
6 रैट माइनर्स ने सोमवार रात 12 घंटे खुदाई की, हाथ से मिट्टी हटा रहे
- टनल के अंदर रैट माइनर्स मैन्युअल खुदाई कर रहे हैं। सोमवार को रात भर खुदाई कर रैट माइनर्स ने तकरीबन 47 मीटर से आगे 51 मीटर तक मिट्टी हटाई। इस पूरे ऑपरेशन में रैट माइनर्स के 6 सदस्य काम कर रहे हैं।
- रैट माइनर्स खुदाई करने के लिए बारी-बारी से पाइप के अंदर जाते हैं, फिर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से खुदाई करते हैं और छोटी ट्राली से एक बार में तकरीबन 7 से 8 किलो मलबा लेकर बाहर आते हैं।
- पाइप के अंदर इन सबके पास बचाव के लिए ऑक्सीजन मास्क, आंखों की सुरक्षा के लिए विशेष चश्मा और हवा के लिए एक ब्लोअर भी मौजूद रहता है, ताकि अंदर किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो।
रैट माइनर्स पर मैन्युअल ड्रिलिंग की जिम्मेदारी
दिल्ली के रहने वाले मुन्ना अपने सहयोगी रैट माइनर्स के साथ सिल्क्यारा टनल साइट पर पहुंच चुके हैं। ये वर्कर रॉकवेल कंपनी में काम करते हैं। ये लोग मैन्युअल ड्रिलिंग के एक्सपर्ट वर्कर हैं। ये 2-2 के ग्रुप में टनल पैसेज में जाएंगे और बची हुई 12 मीटर की हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग को हाथों से अंजाम देंगे। मुन्ना के मुताबिक ये सभी टनल के अंदर जाकर ड्रिलिंग के लिए तैयार हैं।
क्या होते हैं रैट माइनर्स
रैट यानी चूहा। पतले से पैसेज में अंदर जाकर ड्रिल करने वाले मजदूरों को रैट माइनर्स कहते हैं। इस तरह से ड्रिल करने के किए स्पेशल ट्रेनिंग, स्किल और काफी प्रैक्टिस की जरूरत होती है। ये रैट माइनर्स 800mm के पाइप में घुसकर ड्रिल करेंगे।
टनल के अंदर फंसे 41 मजदूरों पर नजर रखने के लिए रोबोटिक्स की मदद ली जा रही है। इसके लिए लखनऊ से AI एंड रोबोटिक्स डेवलपर मिलिंद राज को बुलाया गया है।
मिलिंद ने बताया- हम तीन बड़े काम करेंगे। एक- मजदूरों के बिहेवियर और उनकी हेल्थ को 24X7 मॉनिटर करेंगे। टनल के अंदर फंसे मजदूरों की हताशा की स्थिति को डिटेक्ट करेंगे। दूसरा- टनल के अंदर अगर कोई गैस निकल रही है तो उसे डिटेक्ट करेंगे। तीसरा- टनल के अंदर जहां नेटवर्क भी ठीक से नहीं मिल पा रहा है, वहां हम हाईस्पीड इंटरनेट सिस्टम देंगे।
27 नवंबर: सुबह 3 बजे सिल्क्यारा की तरफ से फंसे ऑगर मशीन के 13.9 मीटर लंबे पार्ट्स निकाल लिए। देर शाम तक ऑगर मशीन का हेड भी मलबे से निकाल लिया गया। इसके बाद रैट माइनर्स ने मैन्युअली ड्रिलिंग शुरू कर दी। रात 10 बजे तक पाइप को 0.9 मीटर आगे पुश भी किया गया। साथ ही 36 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग हो गई थी।
26 नवंबर: उत्तरकाशी की सिल्क्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए पहाड़ की चोटी से वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हुई। रात 11 बजे तक 20 मीटर तक खुदाई हुई। वर्टिकल ड्रिलिंग के तहत पहाड़ में ऊपर से नीचे की तरफ बड़ा होल करके रास्ता बनाया जा रहा है। अधिकारियों ने कहा- अगर कोई रुकावट नहीं आई तो हम 100 घंटे यानी 4 दिन में मजदूरों तक पहुंच जाएंगे।
25 नवंबर: शुक्रवार को ऑगर मशीन टूटने के चलते रुका रेस्क्यू का काम शनिवार को भी रुका रहा। इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट अरनॉल्ड डिक्स ने कहा है कि अब ऑगर से ड्रिलिंग नहीं होगी, न ही दूसरी मशीन बुलाई जाएगी।
मजदूरों को बाहर निकालने के लिए दूसरे विकल्पों की मदद ली जाएगी। बी प्लान के तहत टनल के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग की तैयारी हो रही है। NDMA का कहना है कि मजदूरों तक पहुंचने के लिए करीब 86 मीटर की खुदाई करनी होगी।
24 नवंबर: सुबह ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ तो ऑगर मशीन के रास्ते में स्टील के पाइप आ गए, जिसके चलते पाइप मुड़ गया। स्टील के पाइप और टनल में डाले जा रहे पाइप के मुड़े हुए हिस्से को बाहर निकाल लिया गया। ऑगर मशीन को भी नुकसान हुआ था, उसे भी ठीक कर लिया गया।
इसके बाद ड्रिलिंग के लिए ऑगर मशीन फिर मलबे में डाली गई, लेकिन टेक्निकल ग्लिच के चलते रेस्क्यू टीम को ऑपरेशन रोकना पड़ा। उधर, NDRF ने मजदूरों को निकालने के लिए मॉक ड्रिल की।
23 नवंबर: अमेरिकी ऑगर ड्रिल मशीन तीन बार रोकनी पड़ी। देर शाम ड्रिलिंग के दौरान तेज कंपन होने से मशीन का प्लेटफॉर्म धंस गया। इसके बाद ड्रिलिंग अगले दिन की सुबह तक रोक दी गई। इससे पहले 1.8 मीटर की ड्रिलिंग हुई थी।
22 नवंबर: मजदूरों को नाश्ता, लंच और डिनर भेजने में सफलता मिली। सिल्क्यारा की तरफ से ऑगर मशीन से 15 मीटर से ज्यादा ड्रिलिंग की गई। मजदूरों के बाहर निकलने के मद्देनजर 41 एंबुलेंस मंगवाई गईं। डॉक्टरों की टीम को टनल के पास तैनात किया गया। चिल्यानीसौड़ में 41 बेड का हॉस्पिटल तैयार करवाया गया।
21 नवंबर: एंडोस्कोपी के जरिए कैमरा अंदर भेजा गया और फंसे हुए मजदूरों की तस्वीर पहली बार सामने आई। उनसे बात भी की गई। सभी मजदूर ठीक हैं। मजदूरों तक 6 इंच की नई पाइपलाइन के जरिए खाना पहुंचाने में सफलता मिली। ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई।
केंद्र सरकार की ओर से 3 रेस्क्यू प्लान बताए गए। पहला- ऑगर मशीन के सामने रुकावट नहीं आई तो रेस्क्यू में 2 से 3 दिन लगेंगे। दूसरा- टनल की साइड से खुदाई करके मजदूरों को निकालने में 10-15 दिन लगेंगे। तीसरा- डंडालगांव से टनल खोदने में 35-40 दिन लगेंगे।
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